बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुणे पुलिस को आदेश दिया है कि वह 48 घंटे के भीतर उस रोड रेज मामले में एफआईआर दर्ज करे, जिसमें दो भाइयों के साथ कथित तौर पर धार्मिक आधार पर गाली-गलौज और मारपीट की गई थी। कोर्ट ने खड़क पुलिस की बार-बार शिकायत के बावजूद कार्रवाई न करने पर कड़ी फटकार लगाई।
न्यायमूर्ति रविंद्र वी. घुगे और न्यायमूर्ति गौतम ए. अंकड़ की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता शोएब सैयद की अर्जी पर सुनवाई करते हुए पुणे पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया कि वे कानूनी प्रक्रिया के अनुसार खड़क पुलिस स्टेशन के प्रभारी, पुलिस निरीक्षक शशिकांत चव्हाण को कारण बताओ नोटिस जारी करें और देरी का स्पष्टीकरण मांगे। कोर्ट ने कहा कि यदि स्पष्टीकरण संतोषजनक नहीं हुआ तो सेवा नियमों के तहत उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। अनुपालन रिपोर्ट 6 अक्टूबर 2025 तक मांगी गई है।
कोर्ट ने चव्हाण के आचरण पर हैरानी जताते हुए कहा कि उन्होंने न केवल एफआईआर दर्ज करने से इनकार किया, बल्कि सुनवाई के दिन छुट्टी का नोट दिया और अतिरिक्त सरकारी वकील की मदद के लिए कोर्ट में पेश भी नहीं हुए। न्यायाधीशों ने टिप्पणी की, “खड़क पुलिस स्टेशन के आचरण से हमारी न्यायिक अंतरात्मा स्तब्ध है।”

याचिकाकर्ता के अनुसार, यह घटना पुणे की एक सार्वजनिक सड़क पर वाहन के हॉर्न को लेकर हुए विवाद के बाद हुई। सैयद का आरोप है कि उनके और उनके भाई के साथ हर्ष केशवानी, उनके रिश्तेदार करण, भरत और गिरीश केशवानी समेत अज्ञात सहयोगियों ने मारपीट की और धार्मिक गालियां दीं। ससून जनरल अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट में पांच चोटों, फटे कपड़ों और गंभीर मानसिक आघात का उल्लेख किया गया है, जिसे कोर्ट ने साक्ष्य के तौर पर देखा।
घटना का एक राहगीर द्वारा वीडियो भी रिकॉर्ड किया गया, हालांकि सहायक सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि यह वीडियो आरोपियों में से ही एक ने बनाया था और 27 अप्रैल 2025 को खड़क पुलिस स्टेशन में याचिकाकर्ता के खिलाफ हत्या के प्रयास के आरोप में एक ‘काउंटर एफआईआर’ दर्ज की गई थी।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता देबज्योति तालुकदार ने दलील दी कि स्पष्ट मेडिकल साक्ष्य और बार-बार की गई शिकायतों के बावजूद पुलिस की निष्क्रियता “संस्थागत पक्षपात” है और इससे संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत उनके मुवक्किल के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।