बॉम्बे हाईकोर्ट की कोल्हापुर पीठ ने महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग और कोल्हापुर जिलों में मानव बस्तियों में घूम रहे जंगली हाथी ‘ओंकार’ को पकड़ने और उसे अस्थायी रूप से गुजरात के वंतारा में स्थानांतरित करने की अनुमति दी है। अदालत ने कहा कि यह प्रक्रिया पूरी सावधानी के साथ की जाए ताकि हाथी को कोई चोट या मानसिक आघात न पहुंचे।
न्यायमूर्ति एम. एस. कारनिक और न्यायमूर्ति अजीत कदेतकंर की पीठ ने यह आदेश पिछले सप्ताह रोहित कांबले द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। याचिका में ओंकार की सुरक्षा और कल्याण को लेकर चिंता जताई गई थी, जो कर्नाटक से प्राकृतिक प्रवासन के दौरान महाराष्ट्र में प्रवेश करने के बाद अपने झुंड से बिछड़ गया था।
अदालत ने वन विभाग के इस आकलन से सहमति जताई कि लगभग 10 वर्ष का यह हाथी मानव जीवन, संपत्ति और स्वयं अपने लिए भी खतरा बन गया था। आदेश में दर्ज है कि ओंकार कई घटनाओं में शामिल रहा और अप्रैल में सिंधुदुर्ग जिले के दोडामार्ग में उसने एक व्यक्ति को कुचलकर मार डाला था।
पीठ ने नवंबर में हुई एक “दुर्भाग्यपूर्ण और अमानवीय” घटना का भी उल्लेख किया, जिसमें कुछ लोगों ने नहाते समय ओंकार पर ताकतवर पटाखे फेंके थे।
इन परिस्थितियों को देखते हुए अदालत ने माना कि फिलहाल ओंकार को जंगल में वापस छोड़ना संभव नहीं, क्योंकि “वह खुद अपना संरक्षण नहीं कर पाएगा।”
अदालत ने आदेश में कहा, “वंतारा ओंकार के कल्याण और प्रशिक्षण की देखभाल करेगा, वह भी न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप के साथ।”
वन विभाग ने कोर्ट को बताया कि राधा कृष्णा टेंपल एलिफेंट वेलफेयर ट्रस्ट (वंतारा) ही एकमात्र संस्था है जिसने ओंकार को आश्रय और पुनर्वास देने की इच्छा जताई है।
सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि यह स्थानांतरण अस्थायी होगा। भविष्य में ओंकार के दीर्घकालिक प्रबंधन को लेकर निर्णय सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित हाई पावर कमेटी की सिफारिशों के आधार पर लिया जाएगा।
याचिकाकर्ता ने निजी संस्था को सौंपने का विरोध किया
याचिकाकर्ता कांबले ने स्थानांतरण का विरोध करते हुए कहा कि महाराष्ट्र से बाहर एक निजी संस्था को जंगली हाथी सौंपने से उसकी प्राकृतिक प्रवृत्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उनका कहना था कि देश में किसी भी निजी संस्था को वन्यजीव सौंपने का कोई प्रावधान नहीं है और वंतारा मुख्य रूप से बंदी या श्रमिक हाथियों को ही रखता है, न कि जंगली हाथियों को।
उन्होंने मांग की कि ओंकार को कोल्हापुर जिले के राधानगरी वन्यजीव अभयारण्य या किसी अन्य प्राकृतिक आवास में पुनर्वासित किया जाए।
अदालत ने स्थानांतरण की अनुमति देते हुए हाथियों के पर्यावरणीय महत्व को रेखांकित किया और कहा कि वे जंगल के संतुलन को बनाए रखने में “अत्यंत महत्वपूर्ण” भूमिका निभाते हैं। आदेश में बताया गया कि हाथी भारत में संकटग्रस्त प्रजाति के रूप में वर्गीकृत हैं और उनका अस्तित्व लगातार आवास क्षति और मानव-हाथी संघर्ष के दबाव में है।
अदालत ने यह भी कहा कि ओंकार की उम्र को देखते हुए उसे झुंड में रखकर अन्य हाथियों के साथ सामाजिकता (सोशलाइजेशन) सुनिश्चित करना आवश्यक है।
पीठ ने महाराष्ट्र वन विभाग को निर्देश दिया कि ओंकार के अस्थायी स्थानांतरण और दीर्घकालिक योजना का प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त हाई पावर कमेटी को तीन दिनों के भीतर सौंपे। समिति को दो सप्ताह के भीतर सिफारिशें देने को कहा गया है।




