बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुणे के एक स्कूल द्वारा अवैध निर्माण के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि “अवैधता अपने आप में लाइलाज है।”
न्यायमूर्ति ए. एस. गडकरी और न्यायमूर्ति कमल खाता की खंडपीठ ने 9 मई के आदेश में पुणे मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (PMRDA) द्वारा 17 अप्रैल को जारी ध्वस्तीकरण नोटिस के खिलाफ आर्यन वर्ल्ड स्कूल की याचिका को खारिज कर दिया।
अदालत ने कहा कि भले ही स्कूल में लगभग 2,000 छात्र पढ़ते हों, यह तथ्य अवैध निर्माण को नियमित करने का आधार नहीं बन सकता। पीठ ने टिप्पणी की, “ऐसी गलत सहानुभूति न केवल कानून की पवित्रता को कमजोर करती है, बल्कि नगर नियोजन की बुनियाद को भी खतरे में डालती है।”
भिलारेवाड़ी स्थित आर्यन वर्ल्ड स्कूल, जो एक चैरिटेबल शैक्षिक संस्था है, ने याचिका में कहा था कि ध्वस्तीकरण का आदेश स्कूल प्रबंधन को सुनवाई का मौका दिए बिना पारित कर दिया गया। स्कूल की ओर से अधिवक्ता नीता कर्णिक ने दलील दी कि निर्माण कार्य स्थानीय ग्राम पंचायत द्वारा अक्टूबर 2007 में जारी ‘नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट’ (NOC) के आधार पर किया गया, जो उस समय प्राधिकृत संस्था थी।
हालांकि, अदालत ने माना कि ग्राम पंचायत को निर्माण की अनुमति देने का कोई वैध अधिकार नहीं था और सक्षम प्राधिकरण की गैरमौजूदगी में यह अनुमति जिला कलेक्टर से ली जानी चाहिए थी। अदालत ने पाया कि निर्माण बिना आवश्यक अनुमति के किया गया था, जो इसे पूरी तरह से अवैध बनाता है।
PMRDA पहले ही स्कूल के नियमितीकरण के आवेदन को खारिज कर चुका था। याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने कहा, “कानून सभी पर समान रूप से और बिना किसी अपवाद के लागू होता है।”
पीठ ने महाराष्ट्र में बढ़ती उस प्रवृत्ति की भी कड़ी आलोचना की, जिसमें लोग जानबूझकर अवैध निर्माण कर बाद में सहानुभूति या तीसरे पक्ष के अधिकारों का हवाला देकर नियमितीकरण की मांग करने लगते हैं। आदेश में कहा गया, “यह महाराष्ट्र में एक प्रचलित प्रवृत्ति बन गई है कि लोग अवैध या अनधिकृत निर्माण कार्य कर यह उम्मीद करते हैं कि बाद में इसे नियमित करवा लेंगे।”
अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को ग्राम पंचायत और एनओसी जारी करने में शामिल सरपंच के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया और 14 नवंबर तक उठाए गए कदमों का विवरण देते हुए अनुपालन हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया।