बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को महाराष्ट्र सरकार के उस फैसले के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं (PILs) को सुनने से इनकार कर दिया, जिसमें मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण का लाभ दिलाने के लिए कुनबी जाति प्रमाणपत्र जारी करने की अनुमति दी गई थी। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता “प्रभावित व्यक्ति” नहीं हैं और इसलिए उन्हें इस फैसले को चुनौती देने का अधिकार नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखड़ की खंडपीठ ने कहा कि वास्तव में प्रभावित वर्ग—अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी)—के लोग पहले ही इस फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाएँ दायर कर चुके हैं। इन याचिकाओं की सुनवाई 22 सितंबर को न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे की पीठ करेगी।
“इस स्तर पर ये जनहित याचिकाएँ पूरी तरह से भ्रांतिपूर्ण हैं। सरकार के निर्णय को चुनौती देना प्रभावित व्यक्तियों के लिए खुला था, न कि किसी अन्य व्यक्ति के लिए,” खंडपीठ ने कहा। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि “कानून में दुर्भावना” (malice in law) केवल प्रभावित व्यक्तियों द्वारा ही उठाई जा सकती है।
पीठ ने कहा कि ये PILs खारिज की जानी चाहिए, हालांकि याचिकाकर्ता चाहें तो प्रभावित व्यक्तियों द्वारा दायर याचिकाओं में आवेदन दे सकते हैं। अदालत ने कहा, “यदि दूसरी पीठ को लगे कि उसे इन याचिकाकर्ताओं की सहायता की आवश्यकता है तो वह उन्हें सुनेगी।” अदालत ने मामले को दोपहर बाद के लिए स्थगित किया और PIL याचिकाकर्ताओं को यह बताने का निर्देश दिया कि वे आगे क्या करना चाहते हैं।
हाईकोर्ट में तीन PILs दायर की गई थीं, जिनमें सरकार के इस कदम को मनमाना, असंवैधानिक और कानून के विपरीत बताया गया था। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह निर्णय लागू हुआ तो राज्य की आरक्षण व्यवस्था प्रभावित होगी।
बाद में ओबीसी वर्ग के व्यक्तियों ने भी चार अलग-अलग याचिकाएँ दायर कीं, जिनमें आशंका जताई गई कि मराठाओं को कुनबी प्रमाणपत्र दिए जाने से उनका आरक्षण कोटा घट जाएगा। इन्हीं याचिकाओं पर अगली सुनवाई होगी।
महाराष्ट्र सरकार का यह कदम आरक्षण आंदोलनकारी मनोज जरांगे की अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल के बाद आया। जरांगे ने 29 अगस्त से दक्षिण मुंबई के आज़ाद मैदान में अनशन शुरू किया था और पांच दिनों तक समर्थकों के साथ शहर के कई हिस्सों में आंदोलन किया, जिससे जनजीवन प्रभावित हुआ।
सरकार ने 2 सितंबर को हैदराबाद गजेटियर के आधार पर एक सरकारी संकल्प (जीआर) जारी किया और एक समिति गठित करने की घोषणा की, जो ऐसे मराठाओं को कुनबी प्रमाणपत्र जारी करेगी, जो यह ऐतिहासिक दस्तावेजी सबूत पेश कर सकें कि उनके पूर्वजों को कभी कुनबी के रूप में मान्यता प्राप्त थी।
इस फैसले से ओबीसी वर्ग में बेचैनी बढ़ गई है, क्योंकि उन्हें आशंका है कि मराठाओं को कुनबी प्रमाणपत्र देने से शिक्षा और सरकारी नौकरियों में उनके आरक्षण का हिस्सा घट जाएगा।




