बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को रत्नागिरी ज़िले में स्थित प्राचीन पेट्रोग्लिफ और जिओग्लिफ स्थलों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। ये स्थल मानव सभ्यता के प्रारंभिक काल की झलक पेश करते हैं और इनमें से कई यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स की संभावित सूची में शामिल हैं।
मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मर्ने की खंडपीठ यह निर्देश एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए दे रही थी, जिसे रत्नागिरी के दो स्थानीय किसानों और एक सरकारी कर्मचारी ने दाखिल किया था। याचिकाकर्ताओं ने इन नाज़ुक पुरातात्विक स्थलों की उपेक्षा और सुरक्षा उपायों की कमी पर चिंता जताई थी।
सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में बताया गया कि पुरातत्व और संग्रहालय निदेशालय ने स्थलों का व्यवस्थित सर्वेक्षण शुरू किया है और उनके औपचारिक संरक्षण के प्रस्ताव पर्यटन और सांस्कृतिक कार्य विभाग के पास विचाराधीन हैं।

हलफनामे में यह भी उल्लेख किया गया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने 2021 में यूनेस्को को एक प्रस्ताव भेजा था, जिसमें महाराष्ट्र और गोवा के नौ पेट्रोग्लिफ स्थलों को वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल करने की अनुशंसा की गई थी। महाराष्ट्र के प्रस्तावित स्थलों में रत्नागिरी ज़िले के काशेली, रुंधेताली, देवाचे गोठणे, बारसू, देवीहसोल, जांभ्रुण और उक्षी, तथा सिंधुदुर्ग के कुडोपी का नाम शामिल है।
याचिका में एक महत्वपूर्ण चिंता प्रस्तावित रत्नागिरी ऑयल रिफाइनरी परियोजना से इन स्थलों को होने वाले संभावित खतरे को लेकर जताई गई थी। इस पर महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम (MIDC) ने हलफनामे में बताया कि उसने देवाचे गोठणे और बारसू जैसे दो प्रमुख स्थलों पर भूमि अधिग्रहण अस्थायी रूप से रोक दिया है और अब “पास-थ्रू” अधिग्रहण मॉडल अपनाने का प्रस्ताव रखा है, जिससे उद्योग स्थानीय भूमि धारकों से सीधे बातचीत कर सकें और धरोहर क्षेत्रों को बचाया जा सके।
हलफनामे और लंबित प्रस्तावों पर संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार और पुरातत्व विभाग को निर्देश दिया कि वह इन धरोहर स्थलों के विकास के लिए आवंटित ₹4 करोड़ की निधि का उपयोग संरक्षण, संधारण और दीर्घकालिक देखरेख के लिए करें।
इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को स्थल प्रबंधन के संबंध में सुझाव प्रस्तुत करने की अनुमति दी और संबंधित अधिकारियों को इन सुझावों पर गंभीरता से विचार करने का आदेश दिया।
खंडपीठ ने टिप्पणी की, “ये शैल चित्र स्थल अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर हैं, जिन्हें सर्वोच्च स्तर की सुरक्षा मिलनी चाहिए।” कोर्ट ने राज्य सरकार को यह भी याद दिलाया कि वह महाराष्ट्र की इस प्राचीन विरासत को भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित करने की जिम्मेदारी निभाए।