बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को पूर्व सेबी चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और पांच अन्य अधिकारियों के खिलाफ विशेष अदालत द्वारा एफआईआर दर्ज करने के निर्देश पर लगाई गई अंतरिम रोक को आगे बढ़ा दिया। इन अधिकारियों पर शेयर बाजार में धोखाधड़ी और नियामकीय नियमों के उल्लंघन के आरोप लगाए गए हैं। अदालत ने पाया कि विशेष अदालत का आदेश न केवल अस्पष्ट था बल्कि यांत्रिक रूप से (mechanically) पारित किया गया था।
न्यायमूर्ति शिवकुमार डिगे की पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 7 मई को तय की है, ताकि बुच और अन्य प्रतिवादियों को शिकायतकर्ता द्वारा दाखिल नए दस्तावेजों का अध्ययन करने का समय मिल सके। न्यायमूर्ति डिगे ने सुनवाई के दौरान कहा,
“पहले दी गई अंतरिम राहत अगले आदेश तक जारी रहेगी।”
यह विवाद पत्रकार सपन श्रीवास्तव द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत से जुड़ा है, जिस पर 1 मार्च को विशेष भ्रष्टाचार निवारण अदालत (ACB कोर्ट) के न्यायाधीश एस.ई. बानगर ने आदेश पारित किया था। उस आदेश में नियामकीय चूक और मिलीभगत के प्रथमदृष्टया प्रमाण पाए जाने की बात कहते हुए ACB को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया गया था।

एफआईआर दर्ज करने के निर्देश से प्रभावित व्यक्तियों में वर्तमान सेबी के तीन पूर्णकालिक निदेशक—अश्विनी भाटिया, अनंत नारायण जी और कमलेश चंद्र वर्श्नेय—के साथ बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) के प्रबंध निदेशक और सीईओ सुंदररमन राममूर्ति, तथा पूर्व अध्यक्ष प्रमोद अग्रवाल शामिल हैं। इन सभी ने विशेष अदालत के आदेश को “स्पष्ट रूप से त्रुटिपूर्ण, अवैध और अधिकार क्षेत्र से बाहर” करार देते हुए चुनौती दी है।
शिकायत में 1994 से जुड़े आरोप लगाए गए हैं, जिसमें BSE पर एक कंपनी की सूचीबद्धता को लेकर कथित धोखाधड़ी और SEBI की नियामकीय चूक का हवाला दिया गया है। हालांकि यह मामला तीन दशक पुराना है, विशेष अदालत ने इसे गहन जांच के योग्य मानते हुए आदेश जारी किया और ACB से नियमित जांच प्रगति रिपोर्ट भी मांगी थी।
SEBI की ओर से यह तर्क दिया गया कि जिन अधिकारियों को नामजद किया गया है, वे उस समय अपने पदों पर नहीं थे, जब यह घटनाएं घटी थीं, और उन्हें अपनी बात रखने का अवसर भी नहीं दिया गया। BSE ने भी आरोपों को “तुच्छ और दुर्भावनापूर्ण” बताते हुए कहा कि जिन अधिकारियों के नाम लिए गए हैं, उनका इन घटनाओं से कोई संबंध नहीं था।