बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र के पालघर ज़िले में वसई–विरार नगर निगम के पूर्व प्रमुख अनिल पवार की प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा की गई गिरफ्तारी को “अवैध” करार देते हुए उनकी तत्काल रिहाई का आदेश दिया।
मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखड की खंडपीठ ने कहा कि गिरफ्तारी के समय ईडी के पास ठोस साक्ष्य नहीं थे और इस प्रकार गिरफ्तारी प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) की धारा 19 की कानूनी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती।
“हमने यह राय बनाई है कि 13 अगस्त 2025 को गिरफ्तारी अधिकारी के पास धारा 19 के तहत आवश्यक वह सामग्री मौजूद नहीं थी, जिससे यह ‘मानने का कारण’ बन सके कि आरोपी व्यक्ति ने अपराध किया है,” अदालत ने कहा।

“हमारा अभिप्राय यह है कि कोई ठोस सामग्री नहीं थी और ईडी का पूरा मामला केवल कुछ आर्किटेक्ट्स और डेवलपर्स के बयानों पर आधारित है,” पीठ ने जोड़ा।
ईडी ने अनिल पवार को 13 अगस्त 2025 को गिरफ्तार किया था। उन पर बिल्डरों और डेवलपर्स से मिलीभगत कर वसई और विरार में 41 अवैध इमारतों के निर्माण की अनुमति देने का आरोप है। गिरफ्तारी और विशेष अदालत द्वारा दिए गए रिमांड आदेशों को पवार ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को स्वीकार करते हुए गिरफ्तारी और रिमांड दोनों आदेशों को रद्द कर दिया।
“याचिका इस हद तक सफल होती है कि 13 अगस्त को की गई गिरफ्तारी अवैध है। विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित रिमांड आदेश रद्द किए जाते हैं। याचिकाकर्ता को रिहा किया जाए,” अदालत ने आदेश दिया।
फैसले के बाद ईडी की ओर से उपस्थित अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया, जिसे अदालत ने अस्वीकार कर दिया।
अनिल पवार और अन्य के खिलाफ पहले भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया गया था, जिसमें आरोप था कि उन्होंने बिल्डरों और डेवलपर्स के साथ मिलकर अवैध निर्माण को बढ़ावा दिया। इसी मामले को आधार बनाकर ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू की और अगस्त में पवार को गिरफ्तार किया था।
हाईकोर्ट का निर्णय PMLA की धारा 19 की व्याख्या पर आधारित है, जिसके अनुसार गिरफ्तारी से पहले अधिकारी के पास ठोस और विश्वसनीय सामग्री के आधार पर यह ‘मानने का कारण’ होना चाहिए कि आरोपी ने अपराध किया है। अदालत ने पाया कि पवार के मामले में यह शर्त पूरी नहीं हुई थी।