प्रजनन अधिकारों और शरीर की स्वायत्तता को महत्व देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई की 32 वर्षीय महिला को 26 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दे दी है। यह अनुमति भ्रूण में पाई गई चिकित्सकीय विकृतियों के आधार पर दी गई है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि महिला अपनी पसंद के किसी भी निजी अस्पताल में यह प्रक्रिया करवा सकती है, बशर्ते अस्पताल मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित सभी मानकों का पालन करता हो।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के प्रजनन स्वतंत्रता, शरीर पर अधिकार और व्यक्तिगत चयन के अधिकार को प्रमुखता दी। कोर्ट का यह निर्णय MTP अधिनियम की उन प्रावधानों के बावजूद आया है, जो आमतौर पर 24 सप्ताह से अधिक गर्भावधि वाले मामलों में निजी अस्पतालों में गर्भपात की अनुमति नहीं देते जब तक कि अदालत से विशेष अनुमति न ली गई हो।
28 मार्च को दिए गए आदेश में पीठ ने कहा,
“हम याचिकाकर्ता के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए और उसकी चिकित्सकीय स्थिति को देखते हुए, उसे चिकित्सकीय रूप से गर्भपात की अनुमति देते हैं।”

मामले में हस्तक्षेप तब हुआ जब गर्भावधि के लगभग 24वें सप्ताह में किए गए फिटल ईको कार्डियोग्राफी परीक्षण में भ्रूण में स्केलेटल डिस्प्लेसिया नामक गंभीर विकृति पाई गई, जिससे भ्रूण को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होने की आशंका जताई गई। इसके बाद जे जे अस्पताल की मेडिकल बोर्ड ने महिला की इच्छा के अनुरूप गर्भपात की सिफारिश की।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता मीनाज़ काकालिया ने तर्क दिया कि गर्भपात इस प्रकार किया जाए जिससे भ्रूण जीवित जन्म न ले। उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा MTP अधिनियम के तहत जारी दिशा-निर्देशों का हवाला दिया, जिन्हें महाराष्ट्र सरकार ने भी अपनाया है और जिनमें ऐसे मामलों में भ्रूण की धड़कन रोकने का निर्देश है।
हालांकि कोर्ट ने यह उल्लेख किया कि जे जे अस्पताल की रिपोर्ट में भ्रूण की धड़कन कम करने की विधि स्पष्ट रूप से नहीं बताई गई थी। इस पर अदालत ने दो दिनों के भीतर उपयुक्त विधि पर विस्तृत राय प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।