बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाशिक निवासी संपत तोंगारे को आठ साल बाद बरी कर दिया, जिन्हें 2017 में अपनी पत्नी की हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत परिस्थितिजन्य साक्ष्य दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
न्यायमूर्ति सरंग कोटवाल और न्यायमूर्ति अद्वैत सेठना की खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कहा कि अभियोजन का पूरा मामला केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित था और वे आरोपी की दोषसिद्धि की ओर “अखंड श्रृंखला” नहीं बनाते। अदालत ने आदेश दिया कि तोंगारे को तत्काल रिहा किया जाए।
संपत तोंगारे, नाशिक जिले के दिंडोरी तालुका के कोचरगांव के निवासी हैं। उनकी शादी लता शिंदे से 2014 में हुई थी। 15 जनवरी 2015 को लता का शव घर से कुछ दूरी पर खेत में मिला। लता के पिता शिवराम शिंदे ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि तोंगारे ने अपनी पत्नी पर चरित्र संदेह करते हुए उसे बेरहमी से पीटा और हत्या कर दी।

अभियोजन के अनुसार, तोंगारे ने पहले भी लता को लकड़ी के डंडे से पीटा था जिसके बाद वह अपने मायके चली गई थी। बाद में दोनों परिवारों के बीच समझौता हुआ और लता वापस पति के पास आ गई। कुछ ही दिनों बाद उसकी मौत चेहरे और दिमाग पर चोट से हुए रक्तस्राव (हेमरेजिक शॉक) के कारण हो गई। पुलिस को घटनास्थल के पास झाड़ियों में खून से सना लकड़ी का डंडा मिला था जिसे हत्या का हथियार बताया गया।
तोंगारे की वकील अधिवक्ता स्वप्ना कोडे ने अदालत में कहा कि अभियोजन का पूरा मामला विरोधाभासों से भरा है:
- हत्या का कोई ठोस मकसद (मोटिव) साबित नहीं किया गया।
- अस्पताल के रिकॉर्ड से पता चला कि लता बुखार के इलाज के लिए गई थी, न कि पति की पिटाई के बाद।
- दोनों परिवारों की बैठक में समझौते के गवाहों को अदालत में पेश नहीं किया गया।
- कथित हत्या के हथियार की बरामदगी संदिग्ध है क्योंकि पंच गवाह ने कहा कि उसे लकड़ी पुलिस स्टेशन में दिखाई गई थी।
- खून के दाग़ लता के रक्त समूह से मेल खाते थे, लेकिन घर से खेत तक खून का कोई निशान नहीं मिला।
कोडे ने तर्क दिया कि लता के परिवार ने “गुस्से में आकर” एफआईआर दर्ज कराई थी।
हाईकोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष एक भी परिस्थिति को संदेह से परे साबित नहीं कर सका। अदालत ने कहा कि केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर दोषसिद्धि नहीं की जा सकती।