सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बिहार में चुनाव आयोग द्वारा कराए जा रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) अभ्यास के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने राजद सांसद मनोज झा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलील सुनी। सिब्बल ने आरोप लगाया कि एक विधानसभा क्षेत्र में आयोग ने 12 लोगों को मृत घोषित किया, लेकिन वे जीवित पाए गए, जबकि दूसरी जगह जीवित व्यक्तियों को मृत घोषित कर दिया गया।
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि इस तरह के बड़े पैमाने पर किए गए अभ्यास में “इधर-उधर कुछ खामियां” आ सकती हैं, लेकिन चूंकि यह केवल ड्राफ्ट रोल है, इसलिए इन्हें सुधारा जा सकता है।

पीठ ने आयोग को निर्देश दिया कि वह विस्तृत आंकड़ों के साथ तैयार रहे — जैसे संशोधन शुरू होने से पहले और अब मतदाताओं की संख्या, मृतकों का आंकड़ा और अन्य जरूरी विवरण।
यह विवाद 29 जुलाई को शुरू हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक प्राधिकरण है जो कानून के अनुसार कार्य करने का अपेक्षित है, लेकिन यदि “बड़े पैमाने पर मतदाताओं का नाम हटाने” की स्थिति आई तो अदालत तुरंत हस्तक्षेप करेगी।
ड्राफ्ट रोल 1 अगस्त को प्रकाशित किया गया है, जबकि अंतिम सूची 30 सितंबर को जारी होने वाली है। विपक्षी दलों का आरोप है कि इस प्रक्रिया से करोड़ों पात्र मतदाता अपने मताधिकार से वंचित हो सकते हैं।
इससे पहले 10 जुलाई को शीर्ष अदालत ने आयोग को बिहार में SIR जारी रखने की अनुमति दी थी, लेकिन साथ ही निर्देश दिया था कि आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को मान्य दस्तावेज माना जाए। चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में कहा कि यह प्रक्रिया “अयोग्य व्यक्तियों को हटाकर” चुनाव की “शुद्धता” सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
याचिकाकर्ताओं में कई राजनीतिक नेता शामिल हैं — मनोज झा (राजद), महुआ मोइत्रा (तृणमूल कांग्रेस), के.सी. वेणुगोपाल (कांग्रेस), सुप्रिया सुले (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी–शरद पवार), डी. राजा (भाकपा), हरिंदर सिंह मलिक (समाजवादी पार्टी), अरविंद सावंत (शिवसेना–उद्धव ठाकरे), सरफ़राज़ अहमद (झामुमो) और dipankar भट्टाचार्य (भाकपा–माले)। इनके साथ पीयूसीएल, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और योगेंद्र यादव जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
इन सभी ने चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण की अनुमति दी गई थी। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इससे मतदाता सूची से बड़ी संख्या में पात्र मतदाताओं के नाम हटाए जाने का खतरा है।