सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया है कि यदि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दर्ज प्राथमिकी (FIR) एक विस्तृत स्रोत रिपोर्ट पर आधारित हो, जो संज्ञेय अपराध के घटित होने का खुलासा करती हो, तो प्राथमिकी दर्ज करने से पूर्व प्रारंभिक जांच (Preliminary Enquiry) आवश्यक नहीं है। न्यायालय ने बेंगलुरु विद्युत आपूर्ति निगम (BESCOM) के एक अभियंता के विरुद्ध दर्ज एफआईआर को रद्द करने के कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया।
मामला संक्षेप में
यह अपील कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा 25 अप्रैल 2024 को पारित आदेश के विरुद्ध दायर की गई थी, जिसमें श्री चन्नकेशव एच.डी., जो BESCOM में कार्यकारी अभियंता के पद पर कार्यरत थे, के विरुद्ध दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया था। प्राथमिकी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)(b) सहपठित धारा 13(2) के अंतर्गत दर्ज की गई थी।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, चन्नकेशव ने 1998 में कर्नाटक पावर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन लिमिटेड में नियुक्ति पाई थी और पदोन्नति पाकर बाद में BESCOM में कार्यरत हो गए। आरोप है कि उन्होंने अपनी ज्ञात आय के स्रोतों से अधिक ₹6.64 करोड़ की संपत्ति अर्जित की, जो कि लगभग 92.54% अधिक थी। यह प्राथमिकी 4 दिसंबर 2023 को कर्नाटक लोकायुक्त पुलिस थाने में स्रोत रिपोर्ट के आधार पर दर्ज की गई थी।
हाईकोर्ट की कार्यवाही
अभियुक्त ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर प्राथमिकी को इस आधार पर चुनौती दी थी कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17 की दूसरी व्यवस्था का उल्लंघन हुआ है। हाईकोर्ट ने माना कि यद्यपि पुलिस अधीक्षक (SP) द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश पारित किया गया था, परंतु कोई प्रारंभिक जांच नहीं की गई थी और यह आदेश बिना समुचित विवेक के पारित हुआ। इसी आधार पर प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया द्वारा लिखित और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन द्वारा सम्मत इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक राज्य की अपील को स्वीकार कर लिया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार के मामलों में यद्यपि प्रारंभिक जांच वांछनीय होती है, किन्तु यह अनिवार्य नहीं है।
न्यायालय ने ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य [(2014) 2 SCC 1] तथा कर्नाटक राज्य बनाम टी.एन. सुधाकर रेड्डी [2025 SCC OnLine SC 382] में दिए गए निर्णयों का हवाला देते हुए कहा:
“ललिता कुमारी में प्रयुक्त ‘may be made’ शब्द इस बात को रेखांकित करता है कि प्रारंभिक जांच कराना विवेकाधीन है, अनिवार्य नहीं।”
साथ ही, CBI बनाम थॉम्मंद्रु हन्ना विजयलक्ष्मी [(2021) 18 SCC 135] के निर्णय का संदर्भ देते हुए न्यायालय ने कहा कि किसी लोकसेवक को प्राथमिकी दर्ज करने से पूर्व सुनवाई या स्पष्टीकरण का अवसर देना आवश्यक नहीं होता।
निष्कर्ष और निर्णय
न्यायालय ने पाया कि जांच अधिकारी (DSP) द्वारा तैयार की गई स्रोत रिपोर्ट में विस्तृत विवरण था, जिसमें वर्ष 1998 से 2023 की अवधि में चन्नकेशव द्वारा अर्जित विभिन्न संपत्तियों का उल्लेख किया गया था। रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया था कि आरोपी ने ₹6.64 करोड़ से अधिक की अनुपातहीन संपत्ति अर्जित की है और कानूनी कार्रवाई की सिफारिश की गई थी।
न्यायालय ने कहा:
“भ्रष्टाचार के मामलों में, प्रारंभिक जांच यद्यपि वांछनीय है, किन्तु अनिवार्य नहीं है। ऐसे मामलों में जहाँ कोई वरिष्ठ अधिकारी, संज्ञेय अपराध के घटित होने को दर्शाने वाली विस्तृत स्रोत रिपोर्ट के आधार पर प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देता है, वहाँ प्रारंभिक जांच की आवश्यकता को शिथिल किया जा सकता है।”
इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट का आदेश निरस्त कर दिया और चन्नकेशव के विरुद्ध प्राथमिकी को बहाल कर दिया।
प्रकरण: State of Karnataka v. Sri Channakeshava H.D. & Anr., Criminal Appeal @ SLP (Crl.) No. 16212 of 2024