बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने दिल्ली के उपराज्यपाल कार्यालय द्वारा जारी हालिया नोटिफिकेशन पर औपचारिक आपत्ति जताई है, जिसमें पुलिस अधिकारियों को नामित थानों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपना सबूत दर्ज कराने की अनुमति दी गई है। 25 अगस्त 2025 को लिखे गए पत्र में बीसीआई ने इस नोटिफिकेशन को तुरंत वापस लेने की मांग करते हुए कहा है कि यह “अभियुक्त के अधिकारों और मुकदमे की निष्पक्षता को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।”
बीसीआई ने 13 अगस्त 2025 को जारी नोटिफिकेशन पर “गंभीर चिंता” व्यक्त करते हुए साफ कहा कि तेज़ ट्रायल और तकनीक के फायदों को मानते हुए भी “गवाह का बयान केवल अदालत में उसकी भौतिक उपस्थिति में ही दर्ज होना चाहिए।” वकीलों की सर्वोच्च वैधानिक संस्था बीसीआई ने इस नियम के खिलाफ कई प्रमुख आपत्तियां दर्ज कराईं और कहा कि यह बुनियादी कानूनी सिद्धांतों को कमजोर कर सकता है।
आपत्ति के आधार
बीसीआई ने इस व्यवस्था पर तीन मुख्य आपत्तियां रखीं:

- निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांत का उल्लंघन: पत्र में कहा गया कि अदालत में गवाह की शारीरिक उपस्थिति “निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का आधार स्तंभ” है। गवाह यदि पुलिस थाने जैसे जांच एजेंसी के नियंत्रण वाले स्थान से बयान देता है, तो यह “उसके बयान की विश्वसनीयता और स्वाभाविकता को प्रभावित कर सकता है।”
- प्रभावी जिरह में बाधा: परिषद ने जोर दिया कि सच्चाई सामने लाने के लिए प्रभावी जिरह “अत्यंत आवश्यक” है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए यह प्रक्रिया कठिन हो जाती है, क्योंकि गवाह से सही ढंग से सवाल करना, दस्तावेज़ दिखाना या उसके हावभाव व शारीरिक भाषा का अवलोकन करना मुश्किल होता है। पत्र में कहा गया, “गवाह का बर्ताव बहुत कुछ कहता है।”
- न्यायिक नियंत्रण में कमी: गवाही को अदालत से बाहर स्थानांतरित करने से न्यायाधीश का कार्यवाही पर नियंत्रण कम हो जाता है और “प्रक्रियागत त्रुटियों का खतरा” पैदा होता है।
परामर्श का अभाव
बीसीआई ने यह भी कहा कि वह “न्याय प्रणाली का प्रमुख हितधारक” होने के बावजूद इस नोटिफिकेशन से पहले उससे कोई परामर्श नहीं किया गया, जो निराशाजनक है। पत्र में दोहराया गया कि परिषद तकनीकी प्रगति के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन “आपराधिक प्रक्रिया में ऐसे महत्वपूर्ण बदलाव केवल बार, न्यायपालिका और अन्य प्रमुख हितधारकों के साथ सामूहिक चर्चा के बाद ही किए जाने चाहिए।”
यह पत्र बीसीआई अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा और सह-अध्यक्ष वेद प्रकाश शर्मा द्वारा हस्ताक्षरित है। परिषद ने उपराज्यपाल से नोटिफिकेशन वापस लेने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि पुलिस अधिकारियों के सभी बयान अदालत में उनकी शारीरिक उपस्थिति में ही दर्ज हों, ताकि कार्यवाही की गति और निष्पक्षता दोनों का संतुलन बना रहे।