भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने उस शिकायत को खारिज कर दिया है जिसमे आरोप लगाया गया था कि बार कॉउन्सिल ऑफ इंडिया ने लॉ एडुकेशन में प्रवेश के लिए अधिकतम आयु सीमा लगाकर ,अपने प्रमुख पद का दुरुपयोग कर रही है।
केंद्रीय लोक निर्माण विभाग में कार्यरत 52 वर्षीय इंजीनियर थुपली रवेन्द्र बाबू ने शिकायत दर्ज कराई थी कि सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने कानूनी शिक्षा ग्रहण करने की इच्छा जताई थी। लेकिन कानूनी शिक्षा नियमों 2008 के खंड 28 के तहत सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को कानूनी शिक्षा प्राप्त करने के लिए 30 वर्ष से अधिक आयु होने पर रोक है। आरोप है कि बार कॉउन्सिल ऑफ इंडिया को भारत मे कानूनी शिक्षा और प्रशिक्षण को नियंत्रित करने में एक प्रमुख स्थान प्राप्त है और इसने कानूनी सेवा पेशे में नए प्रवेशको के लिए अप्रत्यक्ष अवरोध पैदा कर प्रतियोगिता अधिनियम की धारा 4 के उल्लंघन में ऐसी स्थिति का दुरुपयोग किया है।
प्रतियोगिता अधिनियम की धारा 4 के अंतर्गत आरोपों को कायम रखने के लिए,विपरीत पक्ष को अधिनियम की धारा 2 एच के तहत एंटरप्राइज (उद्यम) माना जायेगा। इस कारण आयोग मामले में तथ्यों की जांच करने से पूर्व उद्यम के रूप में बीसीआई की स्थिति का पता लगाना आवश्यक समझा। आयोग ने कहा कि एडवोकेट अधिनियम 1961 के प्रावधानों के मुताबिक ,बीसीआई उन कार्यो को करने के लिए सशक्त है। जो कानूनी पेशे में प्रकृति में नियामक हैं।
आगे टिप्पणी करते हुए कहा कि दिलीप मोडविल एंड इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी जिसमे उल्लेख है कि एक इकाई के रूप में एक उद्यम के रूप में आहर्ता प्राप्त करने के लिए इसे वाणिजियक और आर्थिक गतिविधियों में संलग्न होना चाहिए। और आयोंग के विनियामक कार्य क्षेत्राधिकार के लिए योग्य नही है।
Also Read
अशोक कुमार गुप्ता की अध्यक्षता वाले आयोग ने हल निकाला कि बीसीआई के दायरे में एक उद्यम नही है। वर्तमान मामले में बीसीआई अपने नियामक कार्यों का निर्वाहन करता हुआ प्रतीत होता है। इसे अधिनियम की धारा 2(एच) के अर्थ में उद्यम नही कहा जा सकता ,इस कारण निर्वाहन के संबंध में लगाए गए आरोप ऐसे कार्य जो प्रकृति में गैर आर्थिक प्रतीत होते हैं। अधिनियम की धारा 4 के प्रावधानों के भीतर एक परीक्षा का आयोजन नही कर सकते। ऐसा आरोप नही लगाया जा सकता है।
आयोग ने पाया कि बीसीआई के खिलाफ अधिनियम 4 के तहत कोई भी प्रकरण नही है है। और शिकायत को खारिज कर दिया।