भारतीय विधिज्ञ परिषद (Bar Council of India – BCI) ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए विदेशी वकीलों और विदेशी लॉ फर्मों के पंजीकरण और विनियमन हेतु बार काउंसिल ऑफ इंडिया नियम, 2022 में संशोधन को अधिसूचित कर दिया है। इन संशोधित नियमों के अनुसार अब विदेशी वकील और लॉ फर्में भारत में विदेशी लॉ, अंतरराष्ट्रीय लॉ और मध्यस्थता से संबंधित मामलों में सीमित और विनियमित रूप से लॉ प्रैक्टिस कर सकेंगी, वह भी पारस्परिकता (reciprocity) के आधार पर।
ये संशोधित नियम पूर्व में 10 मार्च 2023 को अधिसूचित किए गए थे, जिन्हें अब भारत के राजपत्र में प्रकाशित कर लागू कर दिया गया है। बीसीआई द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में स्पष्ट किया गया है कि इन नियमों का उद्देश्य भारतीय अधिवक्ताओं के हितों की रक्षा करते हुए भारत में विदेशी लॉ प्रैक्टिस को विनियमित करना है।
केवल गैर-विवादात्मक क्षेत्रों में अनुमति
अधिसूचित नियमों के तहत विदेशी वकील केवल विदेशी लॉ, अंतरराष्ट्रीय लॉ और मध्यस्थता (arbitration) जैसे गैर-विवादात्मक (non-litigious) क्षेत्रों में सलाह और परामर्श प्रदान कर सकेंगे।
बीसीआई ने स्पष्ट किया:
“विदेशी वकील भारत में आयोजित अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता में भाग ले सकते हैं, यदि वह विदेशी या अंतरराष्ट्रीय लॉ से संबंधित हो। यह भारत को एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र के रूप में स्थापित करने में सहायक होगा, साथ ही भारतीय अधिवक्ताओं के अधिकारों से कोई समझौता नहीं होगा।”
भारतीय वकीलों के लिए दोहरा पंजीकरण
नए नियम भारतीय अधिवक्ताओं और लॉ फर्मों को विदेशी वकील या विदेशी लॉ फर्म के रूप में पंजीकरण की अनुमति भी प्रदान करते हैं। इससे वे विदेशी लॉ और अंतरराष्ट्रीय लॉ में परामर्श दे सकते हैं, जबकि भारतीय लॉ के तहत उनका अधिवक्ता का दर्जा भी बना रहेगा।
बीसीआई ने इसे “भारतीय अधिवक्ताओं के व्यावसायिक क्षितिज को विस्तृत करने का अवसर” बताया है।
पंजीकरण की सख्त प्रक्रिया
भारत में लॉ प्रैक्टिस करने के इच्छुक विदेशी वकीलों और लॉ फर्मों के लिए सख्त पंजीकरण और नवीनीकरण की शर्तें तय की गई हैं। इसमें मुख्य कानूनी योग्यता का प्रमाण, अनापत्ति प्रमाण-पत्र और भारतीय नियमों का पालन करने की घोषणा शामिल है।
‘फ्लाई इन-फ्लाई आउट’ प्रावधान
बिना पंजीकरण के भारत में लॉ प्रैक्टिस की अनुमति नहीं होगी, लेकिन कुछ सीमाओं के साथ “फ्लाई इन-फ्लाई आउट” (अल्पकालिक उपस्थिति) की अनुमति दी गई है:
- यह केवल विदेशी लॉ, उनके अपने देश का लॉ या अंतरराष्ट्रीय कानूनी मुद्दों पर परामर्श तक सीमित रहेगा;
- सेवा की मांग भारत या विदेश में ग्राहक द्वारा होनी चाहिए;
- भारत में कोई कार्यालय या स्थायी उपस्थिति नहीं होनी चाहिए;
- एक वर्ष में अधिकतम 60 दिन की सीमा निर्धारित की गई है;
- किसी भी विवाद की स्थिति में बीसीआई अंतिम निर्णायक होगा;
- सभी आचार संहिता और अन्य नियम समान रूप से लागू होंगे।
भारतीय-विदेशी लॉ फर्म की अवधारणा
संशोधित नियमों में भारतीय-विदेशी लॉ फर्म (Indian-Foreign Law Firms) की नई अवधारणा भी शामिल की गई है। ये ऐसी भारतीय संस्थाएं हैं जो भारतीय लॉ के तहत विधिक रूप से अधिकृत हैं और विदेशी लॉ में भी सीमित लॉ प्रैक्टिस कर सकती हैं।
नियम 2(vi)(b) के अनुसार:
- ये फर्म भारतीय और विदेशी लॉ दोनों क्षेत्रों में सलाहकार सेवाएं दे सकती हैं;
- भारत में मुकदमों में पक्षकारों का प्रतिनिधित्व कर सकती हैं;
- अंतरराष्ट्रीय विवादों और लेन-देन से जुड़े मामलों में परामर्श और दस्तावेजी सहायता दे सकती हैं;
- बीसीआई के विनियामक अधीन रहेंगी।
संतुलित दृष्टिकोण
बीसीआई ने स्पष्ट किया कि यह नियामक व्यवस्था अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है और भारतीय अधिवक्ताओं के हितों की रक्षा के साथ वैश्विक कानूनी सहयोग को बढ़ावा देती है।
बीसीआई ने यह भी बताया कि कई देशों में ऐसी पारस्परिक व्यवस्था पहले से मौजूद है, और यह कदम भारत को अंतरराष्ट्रीय लॉ के क्षेत्र में बेहतर साझेदारी की दिशा में अग्रसर करेगा।