रामपुर डूंगरपुर कॉलोनी मामले में आज़म ख़ान की सज़ा के खिलाफ अपील पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को समाजवादी पार्टी नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री आज़म ख़ान तथा ठेकेदार बरक़त अली की आपराधिक अपीलों पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। दोनों को 2016 के एक मामले में दोषी ठहराया गया था, जो रामपुर की डूंगरपुर कॉलोनी में जबरन बेदखली और मारपीट से जुड़ा है।

न्यायमूर्ति समीर जैन ने दोनों की अपीलों पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा। रामपुर एमपी-एमएलए कोर्ट ने 30 मई 2023 को आज़म ख़ान को 10 साल कैद और बरक़त अली को 7 साल कैद की सज़ा सुनाई थी।

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मामला अगस्त 2019 में डूंगरपुर कॉलोनी के निवासी अबरार की शिकायत पर दर्ज हुआ था। अबरार का आरोप था कि दिसंबर 2016 में आज़म ख़ान, सेवानिवृत्त सर्किल अधिकारी अले हसन ख़ान और बरक़त अली ने उनके साथ मारपीट की, उनका मकान तोड़ दिया और जान से मारने की धमकी दी। कॉलोनी के अन्य निवासियों ने भी जबरन बेदखली के 12 आपराधिक मामले दर्ज कराए थे, जिनमें डकैती, चोरी और हमला जैसी धाराएँ शामिल थीं।

आज़म ख़ान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इमरान उल्लाह ने दलील दी कि घटना के तीन साल बाद एफआईआर दर्ज हुई, और देरी का कारण यह बताया गया कि शिकायतकर्ता मंत्री पद पर आसीन आज़म ख़ान के प्रभाव के कारण मामला दर्ज नहीं करा सका। उन्होंने कहा कि आज़म ख़ान 2017 तक ही मंत्री रहे और ट्रायल कोर्ट ने उनके खिलाफ “ग़ैरक़ानूनी” तरीके से कार्यवाही की।

वहीं, अतिरिक्त महाधिवक्ता मनीष गोयल ने अपील का विरोध करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट का आदेश तर्कसंगत और क़ानूनी है। उन्होंने कहा कि अपीलकर्ता का लंबा आपराधिक इतिहास है और अभियोजन ने अपना मामला सफलतापूर्वक साबित किया है।

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हाईकोर्ट का सुरक्षित रखा गया यह फैसला तय करेगा कि दोषसिद्धि और सज़ा को बरकरार रखा जाएगा, बदला जाएगा या ख़त्म किया जाएगा।

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