लखनऊ स्थित इलाहाबाद हाईकोर्ट की अवध बार एसोसिएशन ने सोमवार को नवनिर्वाचित पदाधिकारियों व गवर्निंग काउंसिल का प्रमाण पत्र वितरण समारोह आयोजित किया।
प्रमाण पत्र वितरण समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ अधिवक्ता श्री एस के कालिया, अध्यक्ष, एल्डर्स समिति ने की।
श्री कुलदीप पति त्रिपाठी, एएजी, जो चुनाव के रिटर्निंग अधिकारी थे, ने औपचारिक रूप से परिणामों की घोषणा की।
इसके बाद नवनिर्वाचित पदाधिकारियों व शासी परिषद को विजयी अधिवक्ताओं को प्रमाण पत्र वितरित किए गए।
अवध बार एसोसिएशन के अध्यक्ष पद पर अधिवक्ता आनंद मणि त्रिपाठी व महासचिव पद पर अधिवक्ता मनोज मिश्रा निर्वाचित हुए हैं।
चुनाव में 31 जनवरी को वोटिंग हुई थी और कुल 3272 वोट पड़े थे। 1 फरवरी की सुबह मतगणना शुरू हुई और सभी पदों के अंतिम परिणाम रात 9 बजे तक आ गए।
नवनिर्वाचित शासी परिषद के निम्नलिखित सदस्यों को प्रमाण पत्र वितरित किए गए हैं:
अधिवक्ता अनुज कुदेसिया-वरिष्ठ उपाध्यक्ष,
एडवोकेट अमित जायसवाल- उपाध्यक्ष (मध्य), और
अधिवक्ता रवि प्रकाश मिश्रा- उपाध्यक्ष (जूनियर)
संयुक्त सचिव पद पर एडवोकेट अनीता तिवारी, शंकर यादव और अरविंद कुमार तिवारी।
कोषाध्यक्ष के पद पर अधिवक्ता भूपाल सिंह राठौड़।
अधिवक्तागण देवेश चंद्र पाठक, अनुराधा सिंह, अनिल कुमार तिवारी और बनवारी लाल को गवर्निंग काउंसिल (15 वर्ष से अधिक) के पद पर।
गवर्निंग काउंसिल (15 वर्ष से कम )के पद पर अधिवक्तागण हर्षिता मोहन शर्मा, साधन द्विवेदी, आशीष कुमार श्रीवास्तव, आदेश श्रीवास्तव, आरती रावत और अंशुमान पांडे।
अधिवक्ता आनंद मणि त्रिपाठी और मनोज मिश्रा ने बार के सदस्यों को उन पर विश्वास करने और उन्हें चुनने के लिए धन्यवाद दिया।
श्री एस.के. कालिया ने चुनाव टीम और हाईकोर्ट प्रशासन और का आभार व्यक्त किया।
उन्होंने “एक बार एक वोट” के कार्यान्वयन पर जोर दिया और समिति के चुनाव की निष्पक्षता का एक उदाहरण दिया, जहां एक महिला चुनाव अधिकारी के पति अपना वोट डालने आए और उन्होंने अपने पति का पहचान पत्र मांगा ताकि निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित किया जा सके।
श्री कालिया ने कहा कि न्यायिक संस्था को मजबूत करने के लिए बेंच और बार में संतुलन जरूरी है।
उन्होंने कहा-
यह आत्मनिरीक्षण का विषय है कि हममें कहां कमी है और यदि हम ईमानदारी से आत्मनिरीक्षण करें तो हम कमजोरियों के कारणों का पता लगा सकेंगे और यदि हम उन कमजोरियों को दूर कर सकते हैं तो कोई बाहरी ताकत हमारी संस्था को बाधित नहीं कर सकती है।
श्री कालिया ने यह भी कहा
मामले के लंबित रहने के कारण संस्थान पर हमला हो रहा है। लेकिन मुकदमों के निस्तारण में इस देरी के लिए कौन जिम्मेदार है?
उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को इस देरी कारक से प्रभावित नहीं होना चाहिए और उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि मामलों को जल्दी से तय करने के प्रयास में न्याय मिलने कि संभावना कम हो सकती हैं।
उन्होंने नवनिर्वाचित पदाधिकारियों से वकीलों और न्यायाधीशों, वरिष्ठ अधिवक्ता और कनिष्ठ अधिवक्ताओं के बीच सेमिनार और संवाद से जुड़े कानूनी मुद्दों पर “सार्थक कार्यक्रम” आयोजित करने का भी अनुरोध किया।