दिल्ली हाईकोर्ट ने अशोक स्वैन की कथित ब्लैकलिस्टिंग के खिलाफ दायर याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा

दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अकादमिक अशोक स्वैन की उस याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है, जिसमें उन्होंने भारत में प्रवेश पर रोक लगाने वाले कथित ब्लैकलिस्टिंग आदेश को चुनौती दी है।

जस्टिस सचिन दत्ता ने गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, स्वीडन और लातविया स्थित भारतीय दूतावास तथा ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन को नोटिस जारी कर तीन हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। अगली सुनवाई 18 दिसंबर को होगी।

याचिका में कहा गया है कि स्वैन—जो स्वीडन के उप्साला विश्वविद्यालय में पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट रिसर्च विभाग के प्रमुख और प्रोफेसर हैं—को एक ऐसे ब्लैकलिस्टिंग आदेश के आधार पर भारत में प्रवेश से रोका जा रहा है, जिसकी न तो उन्हें प्रति दी गई है और न ही उसका कानूनी आधार बताया गया है। उनका कहना है कि यह कार्रवाई नागरिकता अधिनियम, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों और संवैधानिक सुरक्षा के तहत आवश्यक प्रक्रिया का पालन किए बिना की गई है।

याची ने केंद्र सरकार द्वारा पहले दायर एक काउंटर-अफिडेविट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि स्वैन “स्वीडिश नागरिक और ओसीआई कार्डधारक हैं… उन्हें उनके ‘एंटी-इंडिया लेखन’ और ‘उत्तेजक भाषणों’ के कारण ब्लैकलिस्ट किया गया है, जो भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नुकसान पहुंचाते हैं।”

हाईकोर्ट इससे पहले दो बार केंद्र द्वारा स्वैन का ओसीआई कार्ड रद्द करने के आदेश को रद्द कर चुका है और सरकार को नया शो-कॉज़ नोटिस जारी करने की स्वतंत्रता दी थी। स्वैन का कहना है कि इसके बावजूद उन्हें विदेशियों अधिनियम के तहत देश में प्रवेश से रोका जा रहा है, जबकि न तो उन्हें कारण बताए गए और न ही सुनवाई का अवसर दिया गया।

याचिका में कहा गया है कि कथित ब्लैकलिस्टिंग के लिए कोई विशिष्ट आधार नहीं बताया गया है, जिससे यह कार्रवाई नागरिकता अधिनियम और संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत मिलने वाले वैधानिक एवं संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।

स्वैन ने अदालत से आग्रह किया है कि उन्हें अपने ओसीआई कार्ड के आधार पर भारत में प्रवेश की अनुमति दी जाए, कथित ब्लैकलिस्टिंग आदेश से संबंधित रिकॉर्ड प्रस्तुत किए जाएं और ऐसे किसी भी आदेश को रद्द किया जाए जो उनके भारत आने पर रोक लगाता हो। उनका कहना है कि “दो दौर की न्यायिक समीक्षा के बावजूद, अधिकारी केवल अस्पष्ट और सामान्य आरोपों के आधार पर ब्लैकलिस्टिंग लागू करते रहे, जिनकी सामग्री अदालत को भी नहीं बताई गई,” और इस तरह की गोपनीयता “मनमानी का प्रतीक” है।

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स्वैन ने यह भी बताया है कि उनकी वृद्ध मां भारत में रहती हैं और बीमार हैं, लेकिन वह कई वर्षों से उनसे मिलने भारत नहीं आ सके हैं।

भारत के स्वीडन और लातविया स्थित दूतावास ने 8 फरवरी 2024 को उनका ओसीआई कार्ड रद्द किया था।

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