सुप्रीम कोर्ट संविधान पीठ का फैसला: कुछ सीमित परिस्थितियों में कोर्ट संशोधित कर सकते हैं मध्यस्थता निर्णय

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने धारा 34 और 37 के तहत न्यायिक शक्ति का दायरा स्पष्ट किया; न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने मतभेद जताया

सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि अदालतें मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 34 और 37 के तहत कुछ सीमित परिस्थितियों में मध्यस्थता निर्णय (arbitral award) में संशोधन कर सकती हैं। हालांकि, यह शक्ति अत्यंत सावधानीपूर्वक और केवल विशेष स्थितियों में प्रयोग की जा सकती है।

यह निर्णय गायत्री बालासामी बनाम आईएसजी नोवासॉफ्ट टेक्नोलॉजीज लिमिटेड मामले में मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना तथा न्यायमूर्ति बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति पी. वी. संजय कुमार, न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ द्वारा सुनाया गया। न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन ने बहुमत से असहमति जताई और कहा कि ऐसे संशोधन की अनुमति नहीं दी जा सकती।

किन स्थितियों में संशोधन संभव है

अदालत ने स्पष्ट किया कि निम्नलिखित सीमित परिस्थितियों में मध्यस्थता पुरस्कारों में संशोधन किया जा सकता है:

  1. जब पुरस्कार विभाज्य हो;
  2. जब टाइपिंग या लिपिकीय त्रुटियों को ठीक करना हो;
  3. कुछ मामलों में पुरस्कार उपरांत ब्याज (interest) को संशोधित किया जा सकता है;
  4. अनुच्छेद 142 का प्रयोग बहुत ही सावधानी से किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति विश्वनाथन का विरोधाभासी मत

न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन ने असहमति जताते हुए कहा:

  • धारा 34 के तहत अदालतों को संशोधन या बदलाव की शक्ति नहीं है।
  • ऐसा करना मध्यस्थता प्रक्रिया की मूल भावना को प्रभावित करेगा।
  • अनुच्छेद 142 का उपयोग भी नहीं किया जाना चाहिए।
  • पुरस्कार उपरांत ब्याज का निर्णय मध्यस्थ को ही भेजा जाना चाहिए।

उन्होंने कहा:

“यह पूरी तरह स्पष्ट है कि वे [अदालतें] मध्यस्थता पुरस्कार में कोई बदलाव या संशोधन नहीं कर सकतीं, क्योंकि यह उसकी मूल आत्मा पर प्रहार करेगा।”

READ ALSO  Issue of Same Sex Marriage Should Remain in Legislative Domain: ASG Mehta Argues in SC

पृष्ठभूमि और संदर्भ

यह मुद्दा पहली बार फरवरी 2024 में सामने आया, जब एक तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने पूर्ववर्ती फैसलों में विरोधाभास देखते हुए इस विषय को संविधान पीठ को सौंपने की अनुशंसा की। जनवरी 2025 में मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में यह मामला संविधान पीठ के समक्ष आया।

धारा 34 न्यायालय को मध्यस्थता पुरस्कार को चुनौती देने का सीमित अधिकार देती है, जैसे कि लोक नीति के विरुद्ध निर्णय, न्यायाधिकरण की क्षेत्राधिकारहीनता या उचित सूचना के अभाव में कार्यवाही। यह निर्णय के गुण-दोष की समीक्षा की अनुमति नहीं देती। वहीं धारा 37 विशिष्ट आदेशों के विरुद्ध अपील की प्रक्रिया निर्धारित करती है।

वकीलों की दलीलें

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ताओं और सरकारी वकीलों ने गहन तर्क रखे।

मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में प्रक्रिया-समीक्षा स्वाभाविक होती है, लेकिन अत्यधिक हस्तक्षेप मध्यस्थता की अंतिमता को कमजोर कर देगा। न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि यदि संसद संशोधन को रोकना चाहती, तो वह इसे स्पष्ट रूप से अधिनियम में लिखती।

READ ALSO  पंजाब-हरियाणा बार काउंसिल ने वकील के आवास पर एनआईए के छापे कि निंदा की

वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने “set aside” शब्दों की लचीली व्याख्या करने का आग्रह किया, जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ किरपाल ने तर्क दिया कि धारा 34 में संशोधन का कोई प्रावधान नहीं है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह अधिनियम एक “पूर्ण संहिता” है और संशोधन की शक्ति का न होना जानबूझकर किया गया प्रावधान है।

अदालत में उपस्थित अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं में शामिल थे: दारियस खंबाटा, गौरव बनर्जी, गौरव पचंनंदा, शेखर नफाडे, ऋतिन राय, प्रशांतो चंद्र सेन, सुमीत पुष्कर्णा, नरेश मार्कंडा और बेनी थॉमस।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles