नियुक्ति वापस लेने का फैसला आजीविका और करियर को प्रभावित करने वाला गंभीर नागरिक परिणाम है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के इलेक्ट्रॉनिक मल्टी मीडिया रिसर्च सेंटर (EMMRC) में “प्रोड्यूसर” पद के लिए चयनित दो अभ्यर्थियों की नियुक्ति को वापस लेने का आदेश रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार की नियुक्ति को वापस लेना “आजिविका और करियर को प्रभावित करने वाले गंभीर नागरिक परिणाम” उत्पन्न करता है। इसके साथ ही कोर्ट ने विश्वविद्यालय को नियुक्ति पत्र की शर्तों के अनुसार सेवा में शामिल करने तथा सभी सेवा लाभ प्रदान करने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान ने यह निर्णय रिट याचिका संख्या 35844/2019 (आनंद सिंह असवाल बनाम भारत सरकार व अन्य) और रिट याचिका संख्या 589/2020 (निरंजन कुमार बनाम कुलपति, बीबीएयू व अन्य) में एक साथ साझा आदेश के रूप में पारित किया।

पृष्ठभूमि

13 जनवरी 2017 को विश्वविद्यालय द्वारा EMMRC में विभिन्न पदों की भर्ती हेतु विज्ञापन जारी किया गया था। याचिकाकर्ताओं ने “प्रोड्यूसर” पद के लिए आवेदन किया, चयन प्रक्रिया में शामिल हुए और सफल घोषित किए गए। विश्वविद्यालय की कार्यकारी समिति (Board of Management – BOM) ने 30 जनवरी 2018 को इनकी नियुक्ति को अनुमोदन प्रदान किया और 8 जून 2018 को नियुक्ति पत्र जारी किया गया।

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दोनों याचिकाकर्ताओं ने नियुक्ति स्वीकार कर सभी आवश्यक औपचारिकताएं पूरी कर दी थीं। हालांकि, 27 नवंबर 2019 को एक आदेश द्वारा विश्वविद्यालय ने नियुक्तियां निरस्त कर दीं, जिसका आधार 31 अक्टूबर 2018 को पारित तथा 20 अगस्त 2019 को पुष्टि प्राप्त BOM का एक प्रस्ताव बताया गया।

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याचिकाकर्ताओं की दलीलें

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि नियुक्ति वापस लेने का आदेश गैरकानूनी, मनमाना और कारणरहित था। उन्हें न तो कोई पूर्व सूचना दी गई, न ही पक्ष रखने का अवसर मिला।

कोर्ट के समक्ष यह कहा गया:

“विवादित आदेश दिनांक 27.11.2019 बिना कोई कारण बताए पारित किया गया… जिससे पारदर्शिता और न्याय की भावना का हनन हुआ।”

उन्होंने यह भी कहा:

“अगर चयन समिति की संरचना में कोई खामी थी, तो BOM ने 30.01.2018 को उस चयन को स्वीकृति क्यों दी?”

“उत्तरदाताओं की कार्यवाही, याचिकाकर्ताओं के साथ हुए एक वैध संविदात्मक अनुबंध का उल्लंघन है।”

“नियुक्ति को वापस लेने का निर्णय याचिकाकर्ताओं की आजीविका और करियर को प्रभावित करने वाला गंभीर नागरिक परिणाम उत्पन्न करता है।”

याचिकाकर्ताओं ने “वाजिब आशा” (legitimate expectation) और “प्रतिज्ञा निषेध” (promissory estoppel) सिद्धांतों का भी हवाला दिया।

प्रतिवादियों की दलीलें

विश्वविद्यालय और यूजीसी ने उत्तर में कहा कि चयन समिति एमओयू के अनुसार विधिपूर्वक गठित नहीं हुई थी। चयन में आवश्यक विशेषज्ञ उपस्थित नहीं थे। साथ ही उन्होंने कहा कि केंद्र प्रोजेक्ट मोड पर आधारित था और फंडिंग नहीं मिलने के कारण पूरा प्रोजेक्ट प्रभावित हुआ।

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सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए उन्होंने कहा:

“चयन सूची में स्थान प्राप्त अभ्यर्थी को नियुक्ति का अपराजेय अधिकार नहीं प्राप्त होता… परंतु राज्य अथवा उसकी एजेंसी मनमाने ढंग से नियुक्ति से इनकार नहीं कर सकती।”

(संदर्भ: तेज प्रकाश पाठक बनाम राजस्थान हाईकोर्ट, (2025) 2 SCC 1, अनुच्छेद 64)

कोर्ट की टिप्पणियाँ और निष्कर्ष

न्यायालय ने माना कि नियुक्ति वापस लेने का आदेश अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है और यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है।

न्यायमूर्ति चौहान ने कहा:

“कारणों को दर्ज करना प्राकृतिक न्याय का मूल सिद्धांत है, जो शक्ति के मनमाने प्रयोग के विरुद्ध एक नियंत्रण के रूप में कार्य करता है और निष्पक्षता सुनिश्चित करता है।”

उन्होंने यह भी कहा:

“आदेश दिनांक 27.11.2019 में किसी भी प्रकार का कारण नहीं बताया गया है… उत्तरदाता पक्ष ने मनमाने तरीके से और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत कार्य किया है।”

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं को चयन के बाद नियुक्ति पत्र जारी होने पर यह अपेक्षा बन गई थी कि उन्हें नियुक्त किया जाएगा:

“हालांकि याचिकाकर्ताओं को पूर्ण अधिकार नहीं प्राप्त हुआ था, लेकिन उनकी आशा को मनमाने और अनुचित तरीके से विफल नहीं किया जा सकता।”

“प्रतिज्ञा निषेध” के सिद्धांत को लागू करते हुए कहा गया:

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“जहाँ एक पक्ष प्रतिज्ञा करता है और दूसरा पक्ष उस पर विश्वास कर हानि उठाता है, वहाँ प्रतिज्ञा करने वाला अपना वचन नहीं तोड़ सकता।”

कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि चयन प्रक्रिया की त्रुटियाँ, यदि कोई थीं, तो चयन से पूर्व ही उजागर की जानी चाहिए थीं:

“सरकारी संस्था को एक दिन किसी चयन को स्वीकृति देकर, अगले दिन उसी चयन को खारिज नहीं करना चाहिए जब कारण पहले से ही विद्यमान हो।”

अंतिम निर्णय

न्यायालय ने निम्न आदेशों को रद्द कर दिया:

  • 27 नवंबर 2019 का नियुक्ति वापसी आदेश,
  • 31 अक्टूबर 2018 का BOM प्रस्ताव, तथा
  • 20 अगस्त 2019 की पुष्टि,

इन दोनों याचिकाकर्ताओं के संबंध में।

कोर्ट ने निर्देश दिया:

“प्रतिवादीगण दिनांक 08.06.2018 की नियुक्ति प्रस्तावना को तत्काल प्रभाव से लागू करें तथा याचिकाकर्ताओं को प्रोड्यूसर पद पर नियुक्त करें और सभी परिणामी सेवा लाभ प्रदान करें।”

दोनों याचिकाएं स्वीकार की गईं। कोर्ट ने लागत संबंधी कोई आदेश नहीं दिया।

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