22 साल की कानूनी लड़ाई के बाद रिटायर्ड तहसीलदार को ज़मीन वापस देने का आदेश: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का अहम फैसला

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में रिटायर्ड तहसीलदार मुसुनूरी सत्यनारायण के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उन्हें उनकी कृषि भूमि का कब्ज़ा लौटाने का आदेश दिया है। यह मामला पिछले 22 वर्षों से लंबित था और किरायेदारी संपत्ति की बिक्री व कब्ज़ से जुड़ा हुआ था। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए भूमि की बहाली का निर्देश दिया।

यह फैसला जस्टिस न्यापति विजय ने सिविल पुनरीक्षण याचिका संख्या 2636/2023 में सुनाया, जिसे याचिकाकर्ता मुसुनूरी सत्यनारायण ने खुद पार्टी-इन-पर्सन के रूप में दायर किया था। प्रतिवादी डॉ. तुम्माला इंदिरा देवी व अन्य की ओर से अधिवक्ता अर्राबोलु साई नवीन और श्री कौटिल्य ने पक्ष रखा।

मामले की पृष्ठभूमि

मामला वर्ष 2003 में दर्ज A.T.C. संख्या 2/2003 से शुरू हुआ, जिसे सत्यनारायण ने आंध्र प्रदेश (आंध्र क्षेत्र) किरायेदारी अधिनियम, 1956 के तहत दाखिल किया था। उन्होंने इस भूमि की कीमत ₹1,25,000 प्रति एकड़ तय करने और 10 किश्तों में भुगतान कर उसे खरीदने की अनुमति मांगी थी।

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विवाद गुन्टूर जिले के मुलकुदुरु गांव में लगभग 10.76 एकड़ कृषि भूमि को लेकर था, जिसे सत्यनारायण लीज़ पर जोत रहे थे। इस दौरान पारिवारिक विवाद, कई कानूनी कार्यवाहियाँ और समझौते हुए। सत्यनारायण ने दावा किया कि उन्होंने पहली किश्त डिमांड ड्राफ्ट से चुका दी थी, जिससे बिक्री प्रभावी हो गई थी।

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हालांकि, केस लंबित रहने के दौरान भी डॉ. इंदिरा देवी ने 2006 में भूमि अन्य दो प्रतिवादियों को बेच दी, जिससे सत्यनारायण भूमि से बेदखल हो गए।

मुख्य कानूनी प्रश्न

  1. क्या याचिकाकर्ता को मुकदमे के दौरान बेदखली के बाद भूमि का पुनः कब्ज़ा मिलना चाहिए?
  2. क्या status quo (यथास्थिति) आदेश के उल्लंघन में की गई बिक्री वैध है?
  3. क्या CPC की धारा 144, 151 और आदेश XXI नियम 35(1) के तहत पुनः कब्ज़ा पाने के लिए कार्यवाही की जा सकती है?

मुकदमे की समयरेखा

  • 2003: A.T.C. संख्या 2/2003 दायर की गई।
  • 2009: विशेष अधिकारी ने सत्यनारायण के पक्ष में फैसला दिया; बिक्री वैध मानी गई और अन्य प्रतिवादियों के पक्ष में की गई बिक्री अमान्य घोषित की गई।
  • 2010–2011: प्रतिवादियों की अपीलों में आदेश पलट दिया गया; कहा गया कि सत्यनारायण ने किरायेदारी छोड़ दी थी।
  • 2011–2015: हाईकोर्ट में सिविल पुनरीक्षण याचिकाएँ खारिज।
  • 2021: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट व अपीलों के फैसले रद्द कर 2009 का फैसला बहाल किया।
  • 2021–2023: सत्यनारायण ने पुनः कब्ज़ा पाने के लिए E.P. संख्या 19/2021 दाखिल की, जिसे खारिज कर दिया गया।
  • 2025: हाईकोर्ट ने E.P. की खारिजी को पलटा और राहत प्रदान की।
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हाईकोर्ट की टिप्पणियाँ

जस्टिस न्यापति विजय ने कोर्ट की यह जिम्मेदारी दोहराई कि वह लम्बे समय तक न्याय के लिए लड़ने वाले व्यक्ति को उसका हक़ दिलाए:

“प्रतिवादी संख्या 2 द्वारा किया गया अवैध अतिक्रमण… को निचली अदालत ने मान्यता दी, जिससे पूरे न्यायिक प्रक्रिया का मज़ाक बन गया।”

कोर्ट ने Kavita Trehan v. Balsara Hygiene Products Ltd. (1994) 5 SCC 380 के सुप्रीम कोर्ट निर्णय का हवाला दिया:

“पुनः कब्ज़ा दिलाने की शक्ति हर अदालत में अंतर्निहित होती है और इसका प्रयोग वहां भी किया जा सकता है जहां CPC की धारा 144 लागू नहीं होती।”

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प्रतिवादी द्वारा नए मुकदमे की मांग पर अदालत ने कहा:

“एक बार जब विशेष अधिकारी का आदेश बहाल हो चुका है, तो उसी अधिकार के आधार पर उसे लागू किया जाना चाहिए, जैसा कि वाद के दायर किए जाने के समय था।”

अंतिम निर्णय

हाईकोर्ट ने सिविल पुनरीक्षण याचिका स्वीकार करते हुए विशेष अधिकारी को निर्देश दिया कि एक महीने के भीतर याचिकाकर्ता को भूमि का कब्ज़ा सौंपा जाए। यदि आवश्यक हो, तो पुलिस की सहायता भी ली जाए।

“पुनः कब्ज़ा दिलाने की शक्ति हर अदालत में अंतर्निहित होती है… निचली अदालत का आदेश सफल वादकारी के अधिकार की अवहेलना करता है।”

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