बीएनएसएस लागू होने के बाद एनडीपीएस मामलों में अब उत्तर प्रदेश में एंटीसेपेटरी बेल याचिकाएं स्वीकार्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (NDPS) एक्ट से संबंधित मामलों में अब उत्तर प्रदेश में एंटीसेपेटरी बेल (पुलिस गिरफ्तारी से पहले अग्रिम जमानत) की याचिकाएं विचारणीय हैं। यह निर्णय 2023 में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के लागू होने और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) के निरसन के बाद पारित किया गया है।

न्यायमूर्ति मनीष माथुर की एकल पीठ ने यह आदेश सुधीर @ सुधीर कुमार चौरसिया बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य मामले में पारित किया।

पृष्ठभूमि

याची सुधीर चौरसिया को पहले ही भारतीय दंड संहिता की धाराओं 420, 467, 468 और 471 के तहत दर्ज प्राथमिकी में अग्रिम जमानत दी जा चुकी थी। बाद में उसी मामले में NDPS एक्ट की धारा 22(सी) जोड़ दी गई, जिसके चलते यह नई अग्रिम जमानत याचिका दाखिल की गई।

Video thumbnail

राज्य सरकार की ओर से यह आपत्ति की गई कि उत्तर प्रदेश में 2019 के संशोधन (U.P. Act No. 4 of 2019) के तहत NDPS एक्ट के मामलों में अग्रिम जमानत निषिद्ध थी, और BNSS लागू होने के बाद भी यह निषेध जारी है।

READ ALSO  पिता इस आधार पर भरण-पोषण से इनकार नहीं कर सकता कि बच्चे ननिहाल में रहते है- जानिए हाईकोर्ट का फ़ैसला

प्रमुख कानूनी प्रश्न

न्यायालय ने दो प्रश्नों पर विचार किया:

  1. क्या BNSS की धारा 531(2)(b) के अंतर्गत U.P. Act No. 4 of 2019 की वैधता बनी रहती है?
  2. क्या CrPC की धारा 438 में राज्य संशोधन द्वारा जोड़े गए प्रावधान BNSS की धारा 482 में भी लागू रहेंगे?

न्यायालय की टिप्पणियां और विश्लेषण

न्यायालय ने राज्य सरकार की इस दलील को अस्वीकार कर दिया कि राज्य संशोधन को ‘नोटिफिकेशन’ के रूप में BNSS द्वारा संरक्षित माना जाए। न्यायालय ने कहा:

“संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत अधिनियमित कोई कानून केवल अधिसूचना नहीं हो सकता। अधिनियम और अधिसूचना के बीच स्पष्ट अंतर है।”

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि BNSS की धारा 482 में CrPC की धारा 438 के उपधारा (6) जैसा कोई निषेध नहीं है। यह निषेध पहले उत्तर प्रदेश में लागू था, परंतु BNSS में इसे सम्मिलित नहीं किया गया है।

READ ALSO  महिला को जबरन चूमने के आरोपी को समाज सेवा करने की शर्त पर हाई कोर्ट से मिली राहत- जानिए विस्तार से

कोर्ट ने कहा:

“नए कानून में पहले के प्रतिबंधों को जानबूझकर हटाया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि संसद अब उन प्रतिबंधों को बनाए रखना नहीं चाहती थी।”

संविधानिक दृष्टिकोण और धारा 254(2) का विश्लेषण

कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 254(2) के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि संसद द्वारा पारित कोई नया केंद्रीय कानून राज्य कानून के ऊपर प्रभावी होता है, भले ही राज्य कानून को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हो चुकी हो।

“BNSS 2023 में राज्य संशोधन को जारी रखने का कोई स्पष्ट उद्देश्य व्यक्त नहीं किया गया है, और नए प्रावधान पहले के प्रावधानों से स्पष्ट रूप से भिन्न हैं।”

निर्णय और बेल आदेश

कोर्ट ने यह निर्णय सुनाया:

“अब NDPS एक्ट के अंतर्गत दर्ज प्राथमिकी में भी अग्रिम जमानत याचिका विचारणीय होगी।”

मामले के तथ्यों में, याची न तो घटनास्थल पर पकड़ा गया था, न ही उसके पास से कोई बरामदगी हुई थी। वाहन उसकी माता के नाम था और कोडीन की मात्रा निर्धारित सीमा से अधिक है या नहीं – इसका परीक्षण रिपोर्ट अभी लंबित है।

READ ALSO  हाईकोर्ट ने लोक अभियोजकों के राजनेताओं के साथ संबंध पर जतायी नाराज़गी कहा नैतिकता पर कोर्स करने की ज़रूरत

इसलिए अदालत ने Sushila Aggarwal बनाम राज्य (NCT दिल्ली) (2020) 5 SCC 1 और M. Ravindran बनाम DRI (2021) 2 SCC 485 में उच्चतम न्यायालय द्वारा स्थापित सिद्धांतों के आधार पर अग्रिम जमानत मंजूर कर दी।

मामले का विवरण:

  • मामला: सुधीर @ सुधीर कुमार चौरसिया बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य
  • मामला संख्या: अग्रिम जमानत याचिका संख्या 447 / 2025
  • कोर्ट: इलाहाबाद हाईकोर्ट, लखनऊ पीठ
  • पीठ: न्यायमूर्ति मनीष माथुर
  • याची की ओर से अधिवक्ता: प्रदीप कुमार, आदर्श त्रिपाठी, प्रभात कुमार मिश्रा
  • राज्य की ओर से: डॉ. वी. के. सिंह, अपर महाधिवक्ता

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles