यदि पहली याचिका की अस्वीकृति को चुनौती नहीं दी गई, तो आदेश 21 नियम 58 सीपीसी के तहत दूसरी याचिका पोषणीय नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 21 नियम 58 के तहत दायर पहली याचिका खारिज हो जाती है और उसे चुनौती नहीं दी जाती है, तो उसी राहत के लिए दूसरी याचिका स्वीकार्य नहीं होगी। जस्टिस रवि नाथ तिलहरी और जस्टिस वेनुथुरुमल्ली गोपाल कृष्ण राव की खंडपीठ ने यह भी व्यवस्था दी कि बिक्री का अपंजीकृत समझौता (Unregistered Agreement of Sale) संपत्ति की कुर्की (Attachment) के खिलाफ धारा 64(2) सीपीसी के तहत सुरक्षा प्रदान नहीं करता है।

अदालत ने गुटूरी रंगा रत्नम द्वारा दायर सिविल रिविजन याचिका (CRP) को खारिज कर दिया, जिसमें निचली अदालत द्वारा दूसरी क्लेम याचिका को नामंजूर किए जाने को चुनौती दी गई थी।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला मैसर्स श्रीराम ट्रांसपोर्ट फाइनेंस कंपनी लिमिटेड (प्रतिवादी संख्या 1) द्वारा एक मध्यस्थता अवार्ड (Arbitration Award) के निष्पादन से जुड़ा है, जो 28 फरवरी, 2009 को पारित किया गया था। निष्पादन याचिका (E.P.No.185 of 2021) की कार्यवाही के दौरान, याचिकाकर्ता गुटूरी रंगा रत्नम ने सीपीसी की धारा 47 और आदेश 21 नियम 58 के तहत एक क्लेम याचिका (E.A.No.364 of 2024) दायर की।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने 1 अक्टूबर, 2021 को प्रतिवादी संख्या 2 के साथ संपत्ति के लिए ‘एग्रीमेंट ऑफ सेल’ किया था। हालांकि, 10 जनवरी, 2025 को सातवें अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, विजयवाड़ा ने इस याचिका (E.A.No.364 of 2024) को पोषणीय न मानते हुए खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ने इस आदेश को किसी भी ऊपरी अदालत में चुनौती नहीं दी। इसके बजाय, उसने उसी राहत के लिए आदेश 21 नियम 58 के तहत एक और याचिका (E.A.No.474 of 2025) दायर की, जिसे निष्पादन न्यायालय ने 22 जुलाई, 2025 को खारिज कर दिया। इसी आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में वर्तमान रिविजन याचिका दायर की गई थी।

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याचिकाकर्ता के तर्क

याचिकाकर्ता के वकील, श्री अनासुरी ईश्वर साई ने स्वीकार किया कि 10 जनवरी, 2025 के पहले आदेश को चुनौती नहीं दी गई थी। उनका तर्क था कि चूंकि अब ‘एग्रीमेंट ऑफ सेल’ के आधार पर विशिष्ट पालन (Specific Performance) का मुकदमा दायर कर दिया गया है, इसलिए स्थिति बदल गई है।

वकील ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों—वन्नारक्कल कल्लालाथिल श्रीधरन बनाम चंद्रमाथ बालकृष्णन [(1990) 3 SCC 291] और कंचेरला लक्ष्मीनारायण बनाम मट्टापर्थी श्यामला [(2008) 14 SCC 258] का हवाला देते हुए तर्क दिया कि “बिक्री के समझौते के बाद की गई कुर्की याचिकाकर्ता के अधिकार को नहीं छीन सकती” और एक एग्रीमेंट होल्डर नीलामी खरीदार को बिक्री की पुष्टि कराने से रोक सकता है।

न्यायालय का विश्लेषण और निष्कर्ष

हाईकोर्ट ने सबसे पहले दूसरी याचिका की वैधता पर विचार किया। पीठ ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता ने पहली याचिका के खारिज होने के आदेश (10.01.2025) को चुनौती नहीं दी थी, इसलिए दूसरी याचिका को खारिज करने में निचली अदालत ने कोई गलती नहीं की है।

अदालत ने कहा:

“10.01.2025 के आदेश को न तो वर्तमान याचिका में और न ही पहले चुनौती दी गई है… नतीजतन, हम आदेश 21 नियम 58 के तहत दूसरी याचिका को खारिज करने वाले आदेश में कोई अवैधता नहीं पाते हैं।”

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धारा 64 सीपीसी और अपंजीकृत समझौता

अदालत ने सीपीसी की धारा 64(2) का विश्लेषण करते हुए स्पष्ट किया कि कुर्की के बाद संपत्ति के हस्तांतरण पर रोक से छूट केवल तभी मिलती है जब अनुबंध कुर्की से पहले किया गया हो और वह पंजीकृत (Registered) हो।

याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए तर्कों को खारिज करते हुए, अदालत ने वर्तमान मामले और उद्धृत किए गए नजीरों (Precedents) में अंतर स्पष्ट किया। अदालत ने कहा:

“वर्तमान मामले में, सबसे पहले तो बिक्री का समझौता, जो कुर्की से पहले की तारीख का बताया गया है, पंजीकृत नहीं है और दूसरी बात यह है कि इस समझौते के अनुसरण में कोई बाद की बिक्री (Subsequent Sale) नहीं हुई है।”

अदालत ने श्रीधरन मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि वहां कुर्की से पहले के समझौते के आधार पर बाद में बिक्री विलेख (Sale Deed) निष्पादित किया गया था, जिससे संविदात्मक दायित्व (Contractual Obligation) कुर्की करने वाले लेनदार के अधिकारों पर भारी पड़ा। लेकिन वर्तमान मामले में समझौता अपंजीकृत था, इसलिए यह धारा 64(2) सीपीसी के तहत नहीं आता।

पूर्व निर्णयों में अंतर

कंचेरला लक्ष्मीनारायण मामले के बारे में अदालत ने बताया कि वहां ‘एग्रीमेंट ऑफ सेल’ से इनकार नहीं किया गया था और निष्पादन कार्यवाही के दौरान विशिष्ट पालन का मुकदमा पहले से लंबित था। इसके विपरीत, वर्तमान मामले में:

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“समझौता पंजीकृत नहीं है… और विशिष्ट पालन का मुकदमा, जो वर्ष 2025 में दायर किया गया, 10.01.2025 को पहली याचिका के खारिज होने के समय लंबित भी नहीं था।”

निर्णय

हाईकोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि पहली याचिका खारिज होने के बाद केवल विशिष्ट पालन का मुकदमा दायर कर देने से दूसरी याचिका पोषणीय (Maintainable) नहीं हो जाती। अदालत ने कहा:

“हमारा मत है कि याचिकाकर्ता की पहली E.A.No.364 of 2024 खारिज हो चुकी थी, इसलिए उसी याचिकाकर्ता द्वारा उसी राहत के लिए दायर दूसरी E.A.No.474 of 2025 पोषणीय नहीं हो सकती… 10.01.2025 के आदेश को चुनौती न दिए जाने की स्थिति में, पिछले अस्वीकरण को देखते हुए E.A.No.474 of 2025 को खारिज करना अवैध नहीं कहा जा सकता।”

तदनुसार, हाईकोर्ट ने सिविल रिविजन याचिका को खारिज कर दिया।

मामले का विवरण:

  • केस शीर्षक: गुटूरी रंगा रत्नम बनाम मैसर्स श्रीराम ट्रांसपोर्ट फाइनेंस कंपनी लिमिटेड व अन्य
  • केस संख्या: सिविल रिविजन याचिका संख्या 3050/2025
  • कोरम: जस्टिस रवि नाथ तिलहरी और जस्टिस वेनुथुरुमल्ली गोपाल कृष्ण राव
  • याचिकाकर्ता के वकील: श्री ए. ईश्वर साई

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