सिर्फ नाममात्र मुआवज़ा नहीं, न्यायसंगत होना चाहिए: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए मुआवज़ा बढ़ाकर ₹46.10 लाख किया

एक महत्वपूर्ण फैसले में, आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच—जिसमें न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी और न्यायमूर्ति चला गुना रंजन शामिल थे—ने यह स्पष्ट किया कि मोटर दुर्घटना मामलों में मुआवज़ा “न्यायसंगत और उचित” होना चाहिए, केवल औपचारिकता भर नहीं। कोर्ट ने एक सड़क दुर्घटना में मारे गए 28 वर्षीय युवक की परिवार को दिए गए मुआवज़े को ₹28.39 लाख से बढ़ाकर ₹46.10 लाख कर दिया है, जिस पर 9% वार्षिक ब्याज भी मिलेगा।

पृष्ठभूमि:

यह मामला 13 जून 2019 की रात करीब 10:40 बजे एस. कोठापल्ली गांव (कोडूर मंडल) के पास रेलवे गेट के पास हुई एक दुर्घटना से जुड़ा है। मृतक शेख हनीफ (28 वर्ष) एक बढ़ई और मूर्तिकला कारीगर था। वह अपनी यामाहा स्कूटी चला रहा था जब वह एक बिना किसी चेतावनी या लाइट के खड़ी लोरी (AP 03 T 2529) से टकरा गया और उसकी मौके पर ही मौत हो गई।

परिवार के छह सदस्यों ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166 के तहत ₹30 लाख की क्षतिपूर्ति की मांग करते हुए दावा याचिका दायर की थी।

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कानूनी प्रश्न:

  1. क्या मृतक की ओर से किसी प्रकार की लापरवाही (contributory negligence) थी?
  2. क्या ट्रिब्यूनल द्वारा दिया गया मुआवज़ा न्यायसंगत और पर्याप्त था?

हाईकोर्ट की टिप्पणियाँ और निष्कर्ष:

1. मृतक की कोई लापरवाही नहीं:

बीमा कंपनी द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा:

“अगर लोरी को ठीक से पार्क किया गया होता और उस पर पार्किंग लाइट या चेतावनी संकेत होते, तो पीछे से आने वाले चालक को सावधानी बरतने का अवसर मिल जाता।”

कोर्ट ने Usha Rajkhowa v. Paramount Industries और Anitha Sharma v. New India Assurance Co. जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि मोटर दुर्घटना मामलों में निर्णय संभावनाओं के आधार पर किए जाते हैं, न कि आपराधिक मामलों की तरह सख्त प्रमाण के आधार पर।

2. न्यायोचित और उचित मुआवज़ा:

ट्रिब्यूनल ने मृतक की मासिक आय ₹20,000 मानी थी, जिसे मृतक के नियोक्ता (PW-3) की गवाही के आधार पर स्वीकार किया गया। बीमा कंपनी की आपत्तियों को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा:

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“हमें मृतक की आय के निर्धारण में कोई गैरकानूनीता नहीं दिखती।”

कोर्ट ने Pranay Sethi केस के अनुसार 40% भविष्य संभावनाएं जोड़ीं और Sarla Verma केस के अनुसार 1/4 खर्च कटौती की। साथ ही, Rojalini Nayak v. Ajit Sahoo केस के आधार पर पारंपरिक मदों में भी राशि बढ़ाई गई।

अंतिम मुआवज़ा विवरण:

मदराशि
वार्षिक आय (₹20,000 x 12)₹2,40,000
भविष्य संभावनाएं (40%)₹96,000
कुल ₹3,36,000 – 1/4 कटौती₹2,52,000
गुणक (28 वर्ष के लिए 17)₹42,84,000
पारिवारिक सदस्य (6) हेतु consortium₹2,90,400
संपत्ति की क्षति₹18,150
अंतिम संस्कार खर्च₹18,150
कुल₹46,10,700

ब्याज दर में बढ़ोतरी:

कोर्ट ने Kumari Kiran v. Sajjan Singh और Rahul Sharma v. National Insurance Co. मामलों का हवाला देते हुए मुआवज़े पर ब्याज दर 7.5% से बढ़ाकर 9% प्रतिवर्ष कर दी, जो दावा याचिका की तारीख से भुगतान की तिथि तक लागू होगी।

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फैसले की मुख्य बातें:

  • बीमा कंपनी की अपील: खारिज
  • कुल मुआवज़ा: ₹28,39,000 से बढ़ाकर ₹46,10,700
  • ब्याज दर: 9% प्रतिवर्ष
  • मुकदमे का खर्च: दावेदारों के पक्ष में

“मुआवज़ा सिर्फ सांत्वना मात्र नहीं होना चाहिए, यह ‘न्यायसंगत’ होना चाहिए—ना तो लाभ का जरिया और ना ही तुच्छ राशि।”

यह फैसला एक बार फिर याद दिलाता है कि अदालतों को विशेष रूप से उन मामलों में, जहां परिवार का एकमात्र कमाने वाला सदस्य खो जाता है, न्याय और संवेदनशीलता के साथ निर्णय लेना चाहिए।

मामले का विवरण:

  • मामले का शीर्षक: The Oriental Insurance Company Ltd. बनाम जकीया बेगम व अन्य
  • मामला संख्या: M.A.C.M.A. No.487 of 2024
  • पीठ: न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी और न्यायमूर्ति चला गुना रंजन
  • अपीलकर्ता के वकील: श्री एम. सोलोमन राजू
  • प्रतिवादी के वकील: श्री श्रीनिवास अम्बाटी की ओर से श्री जी. दिव्या तेजा

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