उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राज्य के अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में लगभग 5,000 डॉक्टरों की कमी स्वीकार किए जाने के बाद, इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सरकार को ज़िला-वार अस्पतालों, स्वीकृत पदों और कार्यरत चिकित्सा एवं पैरामेडिकल स्टाफ की विस्तृत जानकारी देने का निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति राजीव भारती की खंडपीठ ने 2017 में दायर विराज खंड रेजिडेंट वेलफेयर सोसाइटी की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। याचिका में राज्य में मरीजों को उचित चिकित्सीय सुविधा सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की गई थी।
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि प्रांतीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा कैडर में 19,659 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन केवल 11,018 डॉक्टर नियमित रूप से कार्यरत हैं। इसके अलावा 283 डॉक्टर प्रतिनियुक्ति पर और 404 डॉक्टर वॉक-इन इंटरव्यू के माध्यम से नियुक्त किए गए हैं।

सरकार ने यह भी बताया कि 2,508 डॉक्टर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत कार्यरत हैं। इस प्रकार राज्य में कुल 14,213 डॉक्टर सेवाएं दे रहे हैं, जो स्वीकृत पदों से लगभग 5,000 कम हैं।
अदालत ने इन आंकड़ों को गंभीरता से लेते हुए कहा कि “एक बड़े राज्य जैसे उत्तर प्रदेश में योग्य डॉक्टरों की उपलब्धता उसके निवासियों के स्वस्थ जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है।”
अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह एक “बेहतर हलफनामा” दाखिल करे, जिसमें निम्न जानकारी ज़िला-वार दी जाए:
- राज्य सरकार के अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों की सूची
- डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ के स्वीकृत पदों की संख्या
- वास्तविक रूप से कार्यरत कर्मचारियों की संख्या
मामले की अगली सुनवाई दो महीने बाद होगी।