कारणहीन आदेश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीआरटी का आदेश रद्द किया, न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षण देने के निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने ऋण वसूली अधिकरण (डीआरटी), लखनऊ द्वारा पारित एक आदेश को यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि उसमें किसी भी प्रकार का कारण या विचार नहीं दिया गया था। न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने प्रार्थना पत्र संख्या: MATTERS UNDER ARTICLE 227 No. 2946 of 2025 की सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया, जिसे याचिकाकर्ताओं द्वारा भारत सरकार और अन्य के विरुद्ध दायर किया गया था।

पृष्ठभूमि

यह याचिका डीआरटी लखनऊ के दिनांक 2 मई 2025 के उस आदेश को चुनौती देने हेतु दायर की गई थी, जिसमें याचिकाकर्ताओं की अंतरिम राहत की अर्जी को अस्वीकार कर दिया गया था। याचिकाकर्ताओं ने आग्रह किया था कि अनुत्तरदाता पक्ष को उनके सुरक्षित परिसंपत्तियों के भौतिक कब्जे से रोका जाए, परंतु डीआरटी ने बिना किसी ठोस कारण के यह कहते हुए अर्जी खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता कोई मामला नहीं बना पाए।

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याचिकाकर्ताओं की दलील

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता आलोक सक्सेना ने कहा कि यद्यपि उन्हें यह ज्ञात है कि डीआरटी के आदेशों के विरुद्ध अपील की जा सकती है, परंतु जिस प्रकार से यह आदेश पारित किया गया वह न्यायिक प्रक्रिया की गंभीर अनदेखी है। उन्होंने कहा कि—

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“कारणयुक्त आदेश किसी भी न्यायिक आदेश की आत्मा होता है,”

और यह तर्क दिया कि उक्त आदेश में किसी भी प्रकार का कोई कारण नहीं दर्शाया गया है।

प्रतिवादियों का पक्ष

संघ सरकार की ओर से अधिवक्ता श्री अश्विनी कुमार सिंह तथा उत्तरदाता बैंक की ओर से अधिवक्ता श्री अभिषेक खरे (सहायक अधिवक्ता सुश्री पारुल शर्मा) ने आदेश का औचित्य सिद्ध करने का प्रयास किया, लेकिन यह स्वीकार किया कि आदेश में अपेक्षित स्तर की कारणयुक्तता नहीं थी, जो कि एक न्यायाधिकरण से अपेक्षित होती है।

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न्यायालय का अवलोकन

न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने आदेश का अवलोकन करते हुए कहा—

“आदेश का अवलोकन यह दर्शाता है कि उसमें विचार की पूर्ण अनुपस्थिति है और प्रथम दृष्टया यह इंगित करता है कि डीआरटी के पद पर कार्यरत अधिकारी को समुचित प्रशिक्षण नहीं प्राप्त है।”

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि डीआरटी, लखनऊ में इस प्रकार के कारणहीन आदेश अन्य मामलों में भी पारित हो रहे हैं।

न्यायालय का निर्णय

हाईकोर्ट ने 2 मई 2025 का डीआरटी आदेश रद्द करते हुए मामले को पुनः डीआरटी लखनऊ को विचारार्थ भेजा, और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता और प्रतिवादी दोनों पक्षों की दलीलों को ध्यान में रखते हुए कानून के अनुसार चार सप्ताह की अवधि में नया आदेश पारित किया जाए। साथ ही, याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध चार सप्ताह तक कोई दंडात्मक कार्रवाई न करने का निर्देश दिया गया।

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इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने यह आदेश भारत सरकार के वित्त मंत्रालय को भेजे जाने का निर्देश दिया ताकि संबंधित न्यायिक अधिकारी को प्रशिक्षण प्रदान किया जा सके। वरिष्ठ रजिस्ट्रार एवं भारत सरकार के अधिवक्ता को यह आदेश मंत्रालय को अग्रसारित करने का निर्देश भी दिया गया।

उक्त टिप्पणियों के साथ याचिका का निस्तारण कर दिया गया।

प्रकरण विवरण:
मामला: विमला कश्यप एवं अन्य बनाम भारत सरकार, वित्तीय सेवा मंत्रालय, नई दिल्ली एवं अन्य
प्रार्थना पत्र संख्या: MATTERS UNDER ARTICLE 227 No. 2946 of 2025

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