विश्वविद्यालय के PTI को अकादमिक स्टाफ माना जाएगा, CAS लाभ मिलेंगे: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि हरकोर्ट बटलर तकनीकी विश्वविद्यालय (एचबीटीयू), कानपुर के फिजिकल ट्रेनिंग इंस्ट्रक्टर (PTI), जिन्हें विश्वविद्यालय बनने से पहले नियुक्त किया गया था, को करियर एडवांसमेंट स्कीम (CAS) के तहत प्रोन्नति के लिए अकादमिक स्टाफ माना जाएगा। न्यायमूर्ति जे. जे. मुनीर ने डॉ. विकास यादव की याचिका स्वीकार करते हुए यह स्पष्ट किया कि पूर्ववर्ती संस्थान के उपविधि, जिनमें इस पद को ‘अकादमिक’ श्रेणी में रखा गया था, विश्वविद्यालय अधिनियम में ‘शिक्षक’ की संकीर्ण परिभाषा पर वरीयता रखेंगे, क्योंकि अधिनियम में पुराने कर्मचारियों की सेवा शर्तों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान (सेविंग्स क्लॉज) है।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता डॉ. विकास यादव को 18 जनवरी 2007 को हरकोर्ट बटलर टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट, कानपुर में फिजिकल ट्रेनिंग इंस्ट्रक्टर पद पर नियुक्त किया गया था। संस्थान तब एक रजिस्टर्ड सोसाइटी द्वारा संचालित था। बाद में यह उत्तर प्रदेश हरकोर्ट बटलर तकनीकी विश्वविद्यालय अधिनियम, 2016 के तहत विश्वविद्यालय में परिवर्तित हो गया।

डॉ. यादव ने पहले रिट-ए संख्या 14778/2019 दायर की थी, जिसमें उन्होंने अपनी नियुक्ति के समय से ही UGC/AICTE मानदंडों के अनुसार शिक्षकीय स्टाफ का दर्जा और वेतनमान माँगा था। इस याचिका के लंबित रहते विश्वविद्यालय ने अपने शिक्षकों के लिए CAS प्रोन्नति प्रक्रिया शुरू की, लेकिन 19 अप्रैल 2022 को कुलपति ने आदेश पारित कर डॉ. यादव और उनके विभाग को CAS साक्षात्कार से बाहर कर दिया। इसके विरुद्ध उन्होंने वर्तमान याचिका रिट-ए संख्या 6849/2022 दाखिल की।

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याचिकाकर्ता की दलीलें

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वी.के. सिंह ने तर्क दिया कि 27 नवंबर 1990 को संस्थान के उपविधियों में संशोधन कर PTI पद को ‘अकादमिक’ श्रेणी में रखा गया था। अधिनियम की धारा 46(1) के अनुसार, जब तक विश्वविद्यालय अपनी पहली ऑर्डिनेंस पारित नहीं करता, तब तक पूर्ववर्ती संस्थान के उपविधि लागू रहते हैं।

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इसके अलावा, अधिनियम की धारा 3(5) में स्पष्ट प्रावधान है कि यदि पुराने कर्मचारियों ने नई शर्तों को नहीं अपनाया, तो उनकी सेवा शर्तें यथावत रहेंगी। उन्होंने यह भी बताया कि उनके कार्य, जैसे छात्रों को खेलों का प्रशिक्षण देना और बीटेक पाठ्यक्रम में शामिल ‘जनरल प्रोफिशिएंसी’ के अंक देना, शिक्षकीय गतिविधियाँ हैं।

प्रतिवादियों की दलीलें

राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता गिरीजेश कुमार त्रिपाठी और विश्वविद्यालय की ओर से अधिवक्ता अवनीश त्रिपाठी ने कहा कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति 2006 के विज्ञापन के अनुसार गैर-शिक्षकीय पद पर हुई थी और उन्होंने बिना आपत्ति गैर-शिक्षकीय वेतनमान स्वीकार किया, इसलिए अब शिक्षकीय दर्जा माँगना न्यायसंगत नहीं।

प्रतिवादियों ने यह भी कहा कि 1990 के उपविधि संशोधन में राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति नहीं ली गई थी, इसलिए यह अमान्य है। 2015 में राज्य सरकार ने PTI पद को सहायक निदेशक (शारीरिक शिक्षा) के रूप में पुनः नामित करने के प्रस्ताव को भी अस्वीकार कर दिया था।

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कोर्ट का विश्लेषण

कोर्ट ने सबसे पहले यह स्पष्ट किया कि भर्ती विज्ञापन और सेवा नियमों में टकराव की स्थिति में नियमों की प्रधानता होती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले Malik Mazhar Sultan बनाम U.P. Public Service Commission का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति मुनीर ने कहा कि यह सिद्धांत पद की प्रकृति पर भी लागू होगा।

कोर्ट ने 1990 के उपविधि संशोधन की वैधता पर चर्चा करते हुए कहा कि उपविधियों का पंजीकरण न होना उनके लागू होने में बाधा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले Managing Committee, Khalsa Middle School बनाम Mohinder Kaur का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा, “27.11.1990 के उपविधि संशोधन, भले ही पंजीकृत न हुए हों…कानूनी प्रभाव रखते हैं और पक्षों को बाध्य करते हैं।”

इसके बाद कोर्ट ने 2016 के अधिनियम और उपविधियों के बीच संतुलन पर विचार किया। कोर्ट ने पाया कि अधिनियम की धारा 3(5) में स्पष्ट ‘नॉटविथस्टैंडिंग क्लॉज’ है, जो पूर्व संस्थान के कर्मचारियों की सेवा शर्तों की रक्षा करता है। इसलिए अधिनियम की धारा 2(20) में ‘शिक्षक’ की संकीर्ण परिभाषा को उपविधियों में दी गई व्यापक परिभाषा के साथ समरस रूप में पढ़ना होगा। कोर्ट ने कहा, “याचिकाकर्ता को अकादमिक स्टाफ का सदस्य और तदनुसार शिक्षक माना जाना चाहिए।”

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले P.S. Ramamohana Rao बनाम A.P. Agricultural University का हवाला देते हुए कोर्ट ने माना कि जिस तरह फिजिकल डायरेक्टर को उनके शिक्षण कार्यों के कारण शिक्षक माना गया, वैसे ही याचिकाकर्ता के कार्य भी अकादमिक हैं।

हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने वर्षों तक बिना आपत्ति के गैर-शिक्षकीय वेतन स्वीकार किया, इसलिए पिछली सेवा के लिए कोई वित्तीय लाभ नहीं दिया जा सकता।

कोर्ट का निर्णय

हाईकोर्ट ने रिट-ए संख्या 6849/2022 को स्वीकार करते हुए कुलपति के 19 अप्रैल 2022 के आदेश को रद्द कर दिया, जिससे याचिकाकर्ता को CAS साक्षात्कार से बाहर रखा गया था। कोर्ट ने राज्य सरकार और विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि वे डॉ. विकास यादव को अकादमिक स्टाफ सदस्य के रूप में मानें और उनका पद पुनः वर्गीकृत कर CAS का लाभ प्रदान करें। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस पुनः वर्गीकरण से याचिकाकर्ता को पूर्व सेवाओं के लिए कोई अतिरिक्त वेतन या वित्तीय लाभ नहीं मिलेगा। रिट-ए संख्या 14778/2019 को रिकॉर्ड में डाल दिया गया।

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