इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकीलों की हड़ताल, न्यायाधीशों की नियुक्ति जल्द करने की मांग

इलाहाबाद हाईकोर्ट में कामकाज ठप हो गया क्योंकि वकीलों ने न्यायाधीशों की घटती संख्या और अधिवक्ता अधिनियम में संशोधन प्रस्ताव के खिलाफ विरोध जताते हुए न्यायिक कार्यों से दूरी बना ली। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन (HCBA) ने गुरुवार को हड़ताल की घोषणा कर इस गंभीर मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित किया।

शुक्रवार सुबह वकील हाईकोर्ट के मुख्य द्वार पर एकत्र हुए और अदालत परिसर में प्रवेश करने से इनकार कर दिया। HCBA के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने न्यायाधीशों की भारी कमी पर प्रकाश डालते हुए कहा, “इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्वीकृत न्यायाधीशों की संख्या 160 है, लेकिन वर्तमान में केवल 55 न्यायाधीश कार्यरत हैं, जिनमें से 23 लखनऊ खंडपीठ में सेवा दे रहे हैं।”

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न्यायाधीशों की इस कमी के कारण मामलों का निपटारा लंबे समय से लंबित है, जिससे कोर्ट में केसों का बोझ बढ़ता जा रहा है। HCBA न केवल खाली पड़े पदों को शीघ्र भरने की मांग कर रहा है, बल्कि बढ़ते केसों को देखते हुए स्वीकृत पदों की संख्या में भी वृद्धि की मांग कर रहा है।

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इसके अलावा, वकील केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2025 के खिलाफ भी विरोध जता रहे हैं। उनका मानना है कि इस विधेयक के प्रावधान वकीलों के हितों और बार एसोसिएशन की स्वायत्तता को प्रभावित कर सकते हैं। इस विधेयक में कानून स्नातकों और अधिवक्ताओं की परिभाषा में महत्वपूर्ण बदलाव करने का प्रस्ताव है। इसके तहत, किसी भी मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थान या बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से तीन या पांच वर्षीय कानून डिग्री प्राप्त करने वाले को कानून स्नातक माना जाएगा।

देश के कई उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के रिक्त पदों की समस्या लंबे समय से बनी हुई है। न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया में देरी का मुख्य कारण सरकार की मंजूरी में देरी और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम तथा केंद्र सरकार के बीच असहमति है।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट इस समस्या से सबसे अधिक प्रभावित है क्योंकि उत्तर प्रदेश की विशाल जनसंख्या और यहां लंबित मामलों की संख्या अन्य राज्यों की तुलना में कहीं अधिक है। वर्षों से, वकील और कानूनी विशेषज्ञ सरकार से न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया को तेज करने की मांग कर रहे हैं ताकि न्यायिक व्यवस्था सुचारू रूप से चल सके। हालांकि, कॉलेजियम द्वारा कई नामों की सिफारिश की गई है, फिर भी कई नियुक्तियां सरकार की मंजूरी के इंतजार में रुकी हुई हैं।

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