इलाहाबाद हाईकोर्ट में उस समय बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया जब सैकड़ों वकीलों ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ अनिश्चितकालीन विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। वकीलों ने भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर गंभीर चिंता जताई है और दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट में उनके ट्रांसफर को वापस लेने की मांग की है।


गेट नंबर-3 पर जुटे वकीलों का कहना है कि ऐसे जजों को इलाहाबाद हाईकोर्ट में जगह नहीं दी जानी चाहिए जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हों। इलाहाबाद बार एसोसिएशन ने भी इस नियुक्ति का पुरजोर विरोध किया है। वकीलों के एक प्रतिनिधि ने कहा, “ऐसे जज को हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।” इससे पहले भी एसोसिएशन साफ कर चुका है कि “इलाहाबाद हाई कोर्ट कोई कूड़ाघर नहीं है, जहां भ्रष्टाचार के आरोपियों को भेजा जाए।”
यह विरोध प्रदर्शन उस घटना के बाद शुरू हुआ जब हाल ही में दिल्ली स्थित जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर आग लगने की घटना के दौरान बड़ी मात्रा में जलती हुई नकदी मिलने की खबरें सामने आईं। इस मामले के बाद जस्टिस वर्मा विवादों में आ गए। इसके बाद जैसे ही उनके इलाहाबाद तबादले की खबर आई, वकील लामबंद हो गए। 25 मार्च से हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी है, जिसे देशभर की कई हाई कोर्ट बार एसोसिएशनों का समर्थन भी मिल रहा है।

पिछले सोमवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी की अध्यक्षता में एक आपात बैठक हुई, जिसमें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के फैसले के विरोध को जारी रखने का निर्णय लिया गया। तिवारी ने बताया कि देश की 22 हाईकोर्टों को समर्थन पत्र भेजे गए हैं। उनके अनुसार, “हमारी लड़ाई किसी एक जज के खिलाफ नहीं, बल्कि उस सिस्टम के खिलाफ है जो ईमानदार और मेहनती जजों की छवि को नुकसान पहुंचा रहा है।”
घटना को लेकर जस्टिस यशवंत वर्मा ने सफाई दी है कि आग लगने के दौरान उनके आवास पर न तो कोई नकदी देखी गई और न ही कर्मचारियों या परिवार के किसी सदस्य ने ऐसा कुछ पाया। उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को दिए जवाब में कहा कि आग के दौरान सभी को सुरक्षा कारणों से बाहर कर दिया गया था, और जब वे वापस लौटे तो उन्हें मौके पर कोई नकदी नहीं मिली।
बार एसोसिएशन ने इस मामले को और आगे बढ़ाते हुए मांग की है कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ सीबीआई और ईडी को जांच की अनुमति दी जाए। इस मुद्दे पर बार एसोसिएशन ने अपनी जनरल बॉडी मीटिंग में 11 प्रस्ताव पारित किए, जिनमें जवाबदेही तय करने और भविष्य में ऐसे मामलों को रोकने के लिए व्यापक सुधारों की मांग शामिल है।