इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक आपराधिक रिट याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग मामले को विशेष न्यायाधीश (CBI/ED) की अदालत से स्थानांतरित करने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ब्रह्म प्रकाश सिंह ने यह आरोप लगाया था कि संबंधित न्यायाधीश ने ₹1 करोड़ की रिश्वत मांगी थी। न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने अपने आदेश में कहा कि यह आरोप निराधार, मनगढ़ंत और मुकदमे से बचने का एक प्रयास मात्र है।
पृष्ठभूमि
ब्रह्म प्रकाश सिंह को पूर्व में विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम), लखनऊ द्वारा 12 फरवरी 2015 को IPC की धारा 409, 420, 467, 468, 471, 120-बी एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के अंतर्गत दोषी ठहराकर 10 वर्ष की सजा सुनाई गई थी। उन्हें बाद में 21 मई 2015 को हाईकोर्ट से जमानत मिल गई थी।
23 जनवरी 2018 को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने उनके खिलाफ PMLA की धारा 3/4 के तहत शिकायत पत्र संख्या 30/2018 दाखिल किया।

याचिकाकर्ता के आरोप
23 दिसंबर 2024 को सिंह ने BNSS की धारा 448 के तहत एक आवेदन दाखिल किया जिसमें आरोप लगाया गया कि विशेष न्यायाधीश (CBI/ED) ने 17 सितंबर 2024 को ₹1 करोड़ की रिश्वत मांगी थी, ताकि उन्हें बरी किया जा सके और संपत्ति की जब्ती हटाई जा सके। यह आरोप लगाया गया कि यह मांग अदालत में ही की गई जब न्यायाधीश मंच पर अकेले थे।
12 दिसंबर 2024 को याचिकाकर्ता ने इस संबंध में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को शिकायत पत्र भेजा, हालांकि यह घटना के लगभग तीन महीने बाद की गई।
सिंह ने यह भी आरोप लगाया कि उनके द्वारा दाखिल धारा 311 CrPC व धारा 59(2)(c) PMLA के तहत आवेदनों को अनुचित ढंग से खारिज कर दिया गया और न्यायालय ने उनके द्वारा प्रस्तुत निर्णयों पर विचार नहीं किया।
सत्र न्यायालय के निष्कर्ष
11 अप्रैल 2025 को विशेष सत्र न्यायाधीश द्वारा स्थानांतरण याचिका खारिज कर दी गई। उन्होंने अपने आदेश में लिखा कि संबंधित विशेष न्यायाधीश ने रिश्वत मांगने के आरोपों को सिरे से खारिज किया है और कहा कि जब अदालत चल रही होती है, तब न्यायालय का स्टाफ एवं लोक अभियोजक उपस्थित रहते हैं।
सत्र न्यायाधीश ने कहा कि लगाए गए आरोप निराधार एवं अस्पष्ट हैं और मुकदमे के स्थानांतरण का कोई औचित्य नहीं बनता।
हाईकोर्ट का विश्लेषण
न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने सत्र न्यायाधीश के आदेश से सहमति जताते हुए याचिका को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा:
“कोई भी सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति यह विश्वास नहीं करेगा कि न्यायालय में ₹1 करोड़ की रिश्वत की मांग केवल न्यायाधीश और याचिकाकर्ता के वकील की उपस्थिति में की गई थी।”
न्यायालय ने यह भी पाया कि याचिकाकर्ता ने जब तक उसके खिलाफ कई न्यायिक आदेश पारित नहीं हो गए, तब तक कोई स्थानांतरण आवेदन या शिकायत नहीं की। यह याचिका केवल इसलिए दाखिल की गई ताकि उस न्यायालय से मुकदमा हटाया जा सके जिसने उसके खिलाफ आदेश पारित किए।
याचिकाकर्ता द्वारा समकोटि पीठ के एक न्यायाधीश के विरुद्ध लगाए गए आरोपों को लेकर कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा:
“यह आरोप स्पष्ट रूप से झूठा, आपत्तिजनक और न्यायालय की अवमानना करने वाला है।”
State of Maharashtra v. Ramdas Shrinivas Nayak [(1982) 2 SCC 463] का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि न्यायिक आदेशों में दर्ज घटनाएं अंतिम होती हैं और उन्हें हलफनामों या अन्य साक्ष्यों से चुनौती नहीं दी जा सकती।
निर्णय
न्यायालय ने कहा कि यह स्थानांतरण याचिका “झूठे और काल्पनिक आरोपों” पर आधारित है ताकि उस न्यायालय के समक्ष सुनवाई से बचा जा सके जिसने पहले ही प्रतिकूल आदेश पारित किए हैं।
याचिका को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया गया।
मामला: ब्रह्म प्रकाश सिंह बनाम राज्य उत्तर प्रदेश व अन्य
याचिका संख्या: आपराधिक रिट याचिका संख्या 4503/2025