हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने झांसी के प्रेमनगर में एक बैंक के हेड कैशियर मनीष कुमार की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि वकील केवल जमानत याचिका में प्रस्तुत तथ्यों के आधार पर ही बहस कर सकते हैं। न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान ने कहा कि यदि तथ्य अपराध का संकेत देते हैं, तो अग्रिम जमानत देना पीड़ित के हितों के खिलाफ होगा। न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अग्रिम जमानत एक विशेष प्रावधान है जिसका उपयोग गलत तरीके से फंसाए जाने के डर से गलत कारावास को रोकने के लिए किया जाता है।
यह मामला तब सामने आया जब सुनील कुमार तिवारी अपने सुरक्षा गार्ड योगेंद्र सिंह के साथ बैंक गए और कैशियर मनीष कुमार के पास लगभग ₹39 लाख जमा किए, लेकिन रसीद प्राप्त किए बिना चले गए। जब अगले दिन रसीद मांगी गई, तो केवल ₹11 लाख जमा किए गए थे, जिसके कारण स्थानीय पुलिस स्टेशन में विश्वासघात की शिकायत दर्ज की गई।
मनीष कुमार ने हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत मांगी, जिसमें दावा किया गया कि उन्हें गलत तरीके से फंसाया गया है। उनके वकील ने तर्क दिया कि शुरू में पूरी रकम सौंप दी गई थी, लेकिन कुछ ही देर बाद गार्ड वापस आया और ₹28 लाख वापस ले गया, केवल शेष राशि जमा की गई। उन्होंने दावा किया कि घटनाक्रम सीसीटीवी में रिकॉर्ड हो गया।