डिप्टी रजिस्ट्रार को सोसायटी चुनाव की वैधता तय करने का अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि डिप्टी रजिस्ट्रार, फर्म्स, सोसाइटीज एंड चिट्स के पास सोसायटी के चुनाव की वैधता पर निर्णय लेने का अधिकार क्षेत्र नहीं है। कोर्ट ने कहा कि चुनाव संबंधी विवादों का निपटारा केवल धारा 25 के तहत ‘प्रेस्क्राइब अथॉरिटी’ (विहित प्राधिकारी) द्वारा ही किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने आर्य प्रतिनिधि सभा और अन्य द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए डिप्टी रजिस्ट्रार द्वारा पारित उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उन्होंने सोसायटी के चुनावों की वैधता पर फैसला सुनाया था।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला आर्य प्रतिनिधि सभा के चुनावों से संबंधित है। याचिकाकर्ताओं ने डिप्टी रजिस्ट्रार, लखनऊ मंडल द्वारा पारित 5 दिसंबर, 2025 के आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश के माध्यम से डिप्टी रजिस्ट्रार ने 27 मार्च, 2021 को संपन्न हुए उस चुनाव को वैध करार दिया था, जिसमें श्री भुवन तिवारी को प्रधान चुना गया था।

इसके साथ ही, डिप्टी रजिस्ट्रार ने दो अन्य चुनावों को अवैध और शून्य घोषित कर दिया था:

  1. 27 मार्च, 2021 को हुआ चुनाव, जिसमें याचिकाकर्ता डॉ. राम रतन चतुर्वेदी निर्वाचित हुए थे।
  2. 21 मार्च, 2021 को हुआ चुनाव, जिसमें देवेंद्र पाल वर्मा (अन्य याचिकाकर्ता) निर्वाचित हुए थे।
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याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि डिप्टी रजिस्ट्रार ने चुनाव विवाद को खुद ही हल करके अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया है, जबकि उन्हें इसे प्रेस्क्राइब अथॉरिटी को भेजना चाहिए था।

कोर्ट में दलीलें और कानूनी स्थिति

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्री गौरव मेहरोत्रा ने तर्क दिया कि सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत डिप्टी रजिस्ट्रार के पास चुनाव की वैधता निर्धारित करने की शक्ति नहीं है। उन्होंने कहा कि जब भी किसी सोसायटी के पदाधिकारियों के चुनाव या उनके पद पर बने रहने को लेकर कोई विवाद होता है, तो डिप्टी रजिस्ट्रार कानूनी रूप से बाध्य हैं कि वे मामले को न्यायनिर्णयन के लिए प्रेस्क्राइब अथॉरिटी के पास भेजें।

सुनवाई के दौरान, पक्षकारों के वकीलों ने विस्तृत बहस की, लेकिन अंततः इस कानूनी स्थिति पर सहमति बनी कि “चुनाव विवाद का निर्णय डिप्टी रजिस्ट्रार द्वारा नहीं किया जा सकता है और इसका निर्णय केवल सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 25 के तहत प्रेस्क्राइब अथॉरिटी द्वारा ही किया जा सकता है।”

विपक्षी पक्षकार श्री भुवन तिवारी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री कपिल देव ने सोसायटी के अंतरिम प्रबंधन को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने अनुरोध किया कि जब तक प्रेस्क्राइब अथॉरिटी विवाद का फैसला नहीं कर लेती, तब तक सोसायटी के हितों की रक्षा के लिए उचित सुरक्षा उपाय किए जाने चाहिए।

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हाईकोर्ट का निर्णय और निर्देश

हाईकोर्ट ने माना कि डिप्टी रजिस्ट्रार ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम किया है। तदनुसार, कोर्ट ने 5 दिसंबर, 2025 के विवादित आदेश को रद्द कर दिया।

न्यायमूर्ति विद्यार्थी ने डिप्टी रजिस्ट्रार को निर्देश दिया कि वे चुनाव विवाद को तत्काल सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 25 के तहत प्रेस्क्राइब अथॉरिटी को संदर्भित करें। चूंकि प्रबंध समिति का कार्यकाल मार्च 2026 में समाप्त हो रहा है, इसलिए कोर्ट ने समयबद्ध निस्तारण पर जोर दिया।

कोर्ट ने निर्देश दिया:

“प्रेस्क्राइब अथॉरिटी इस विवाद का निर्णय शीघ्रता से करें। चूंकि प्रबंध समिति का कार्यकाल मार्च 2026 में समाप्त हो जाएगा, इसलिए यह निर्देशित किया जाता है कि प्रेस्क्राइब अथॉरिटी दो महीने की अवधि के भीतर कार्यवाही को पूरा करने का हर संभव प्रयास करे।”

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अंतरिम सुरक्षा उपाय

विवाद के लंबित रहने के दौरान सोसायटी के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए, हाईकोर्ट ने वर्तमान प्रबंध समिति के लिए कुछ शर्तें निर्धारित की हैं:

  1. प्रबंध समिति सोसायटी के दैनिक कार्यों का प्रबंधन उचित तरीके से करेगी।
  2. वह सोसायटी की संपत्तियों के संबंध में किसी भी तीसरे पक्ष (third party) का हित सृजित नहीं करेगी।
  3. प्रेस्क्राइब अथॉरिटी के समक्ष मुकदमेबाजी जारी रहने तक ऐसा कोई भी नीतिगत निर्णय नहीं लिया जाएगा जो अन्य पक्षों के हितों प्रतिकूल प्रभाव डालता हो।

केस डिटेल्स

  • केस टाइटल: आर्य प्रतिनिधि सभा जरिए प्रेसिडेंट प्रधान डॉ. राम रतन चतुर्वेदी व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य
  • केस नंबर: WRIT-C No. 12312 of 2025
  • कोरम: न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी
  • याचिकाकर्ताओं के वकील: श्री गौरव मेहरोत्रा (वरिष्ठ अधिवक्ता), सुश्री मंजरी, श्री संतोष कुमार त्रिपाठी, श्री हर्ष वर्धन मेहरोत्रा, सुश्री मारिया फातिमा
  • प्रतिवादियों के वकील: सी.एस.सी., श्री एस.के. खरे, श्री कपिल देव (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री अश्विनी कुमार, श्री करुणानिधि यादव

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