इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 10 अप्रैल 2025 को पारित अपने निर्णय में (CRIMINAL MISC. WRIT PETITION No. 2611 of 2020: Usman Ali vs. State of U.P. and 12 others) यह स्पष्ट किया कि कब किसी आपराधिक मामले की जांच राज्य पुलिस से केंद्रीय एजेंसियों जैसे CBI या NIA को सौंपी जा सकती है।
यह याचिका 2018 में सोनभद्र जिले के टाउन एरिया चोपन के तत्कालीन चेयरमैन इम्तियाज अहमद की हत्या से जुड़ी थी। याचिकाकर्ता उस्मान अली (मृतक के भाई) ने यह मांग की थी कि मामले की जांच CB-CID से हटाकर CBI/NIA को सौंपी जाए।
मामले की पृष्ठभूमि
- याचिकाकर्ता ने 26.06.2019 के उस सरकारी आदेश को चुनौती दी, जिसके तहत केस क्राइम नं. 238/2018 (धारा 147, 148, 149, 302, 120B, 34 IPC एवं आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम की धारा 7 के तहत दर्ज) की जांच स्थानीय पुलिस से लेकर CB-CID को सौंप दी गई थी।
- उन्होंने Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967 लागू करने तथा NIA Act, 2008 की धारा 6 के तहत जांच NIA को सौंपने की मांग की थी।
- याचिका में आरोप लगाया गया कि प्रतिबंधित संगठन झारखंड जन मुक्ति परिषद (JJMP) के उग्रवादी इसमें शामिल थे। आरोपी कश्मीर पासवान उर्फ रौकेट को प्रतिबंधित 9mm कारबाइन के साथ पकड़ा गया था और वह JJMP का “एरिया कमांडर” बताया गया।
- याचिकाकर्ता का कहना था कि आरोपियों के राजनीतिक प्रभाव के कारण जांच निष्पक्ष नहीं रही और स्वतंत्र केंद्रीय एजेंसी से जांच आवश्यक है।
याचिकाकर्ता के तर्क
वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश पांडे ने अदालत के समक्ष कहा:

- CB-CID को जांच सौंपना आरोपियों के राजनीतिक प्रभाव में किया गया।
- CB-CID द्वारा 29.02.2020 को दाखिल चार्जशीट में राकेश जायसवाल व रवि जालान को निर्दोष बताना मनमाना था।
- भले ही ट्रायल शुरू हो चुका हो और गवाहों की गवाही हो चुकी हो, फिर भी संवैधानिक अदालतें विशेष परिस्थितियों में जांच CBI/NIA को सौंप सकती हैं।
- Rampal Gautam v. State (2025) और Dharam Pal v. State of Haryana [(2016) 4 SCC 160] का हवाला देते हुए कहा कि न्याय की आवश्यकता हो तो ट्रायल के बाद भी जांच दोबारा करवाई जा सकती है।
- चूंकि इसमें एक प्रतिबंधित संगठन और जनप्रतिनिधि (चेयरमैन) शामिल थे, इसलिए UAPA के तहत केंद्रीय एजेंसी की जांच आवश्यक है।
राज्य सरकार की ओर से तर्क
राज्य की ओर से एजीए-I परितोष मालवीय ने प्रस्तुत किया:
- CB-CID ने जांच पूरी करके आठ आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की।
- ट्रायल अंतिम चरण में है, आठ अभियोजन गवाहों की गवाही हो चुकी है।
- ATS की रिपोर्ट के अनुसार यह हत्या व्यक्तिगत दुश्मनी का परिणाम थी, आतंकवाद या उग्रवाद से जुड़ी नहीं।
- याचिकाकर्ता ने प्रोटेस्ट पिटीशन और क्रिमिनल रिवीजन जैसे वैधानिक उपाय पहले ही अपना लिए हैं।
- इस चरण में जांच का ट्रांसफर ट्रायल को बाधित करेगा और यह कदम तभी उठाया जाना चाहिए जब असाधारण परिस्थितियाँ हों।
- K.V. Rajendran v. Superintendent of Police [AIR 2013 SC (Criminal) 2103] और Kabir Shankar Bose v. State of West Bengal [2024 SCC OnLine SC 3592] के हवाले से कहा गया कि CBI/NIA को जांच का ट्रांसफर केवल दुर्लभ व असाधारण मामलों में ही होना चाहिए।
कोर्ट के अवलोकन
न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और प्रशांत कुमार की डिवीजन बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा:
“संवैधानिक अदालतों के पास जांच को दोबारा शुरू करने, नई जांच या ताजा जांच का आदेश देने का अधिकार है और यदि ट्रायल प्रारंभ हो गया हो और कुछ गवाहों की गवाही हो चुकी हो, तब भी न्यायहित में यह शक्ति प्रयोग की जा सकती है।”
(Dharam Pal v. State of Haryana)
हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि:
- यह शक्ति बहुत संयम से और केवल विशेष परिस्थितियों में ही प्रयोग की जानी चाहिए।
- जब मौजूदा जांच पक्षपातपूर्ण या झूठी प्रतीत हो;
- जब उच्च स्तरीय राज्य अधिकारी जांच के दायरे में हों;
- जब मामला राष्ट्रीय सुरक्षा या आतंकवाद से जुड़ा हो;
- या जब न्याय और जनता का विश्वास स्वतंत्र जांच की मांग करे—तब ही जांच ट्रांसफर उचित होता है।
इस मामले में, कोर्ट ने पाया कि:
- जांच ट्रायल के चरण में पहुंच चुकी है।
- याचिकाकर्ता ने प्रोटेस्ट पिटीशन जैसे उपाय अपनाए।
- कोई ऐसा आधार नहीं है जिससे यह कहा जाए कि जांच पक्षपातपूर्ण थी।
कोर्ट ने कहा:
“शिकायतकर्ता को यह स्वतंत्रता है कि वह अपनी पूरी बात मुख्य गवाही (Examination-in-Chief) में रखे और ट्रायल कोर्ट से अनुरोध करे कि अन्य अभियुक्तों को भी धारा 319 CrPC के तहत बुलाया जाए।”
इसलिए, धारा 319 CrPC के तहत ट्रायल कोर्ट से ही उचित राहत ली जा सकती है, न कि पुनः जांच की मांग करके।
निष्कर्ष और निर्णय
कोर्ट ने CBI या NIA को जांच स्थानांतरित करने की याचिका को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता यह साबित नहीं कर पाए कि CB-CID की जांच पक्षपातपूर्ण, दोषयुक्त या न्याय की विफलता से ग्रस्त थी।
“CBI/NIA को जांच ट्रांसफर करना एक असाधारण उपाय है, जिसे ट्रायल प्रारंभ हो जाने के बाद सामान्यतः नहीं अपनाया जाना चाहिए।”