इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के तहत यौन संबंध के लिए सहमति की उम्र 18 वर्ष है। इससे कम उम्र की लड़की के साथ उसकी सहमति से या सहमति के बिना बनाए गए यौन संबंध को बलात्कार माना जाएगा। न्यायमूर्ति जे.जे. मुनीर और न्यायमूर्ति संजीव कुमार की खंडपीठ ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का निस्तारण करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने एक 17 वर्षीय मां को उसकी सास की हिरासत में बाल गृह से रिहा करने से इनकार कर दिया और कहा कि नए कानून के तहत, नाबालिग से शादी करना बलात्कार के अपराध में बचाव का आधार नहीं हो सकता।
मामले की पृष्ठभूमि
यह बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका एक नाबालिग लड़की और उसके दो महीने के बेटे द्वारा दायर की गई थी। याचिकाकर्ता की सास द्वारा दिए गए हलफनामे के आधार पर, नाबालिग को कानपुर नगर स्थित राजकीय बाल गृह (बालिका) से रिहा करने की मांग की गई थी।
मामले के तथ्यों के अनुसार, 05.10.2008 को जन्मी नाबालिग लड़की ने 03.07.2025 को एक व्यक्ति से विवाह कर लिया। उस समय वह 17 साल की होने से तीन महीने छोटी थी। शादी के बाद, लड़की के पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसके आधार पर भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 137(2) के तहत अपराध दर्ज किया गया।

14.07.2025 को नाबालिग ने एक बेटे को जन्म दिया। इसके बाद 22.07.2025 को उसके पति को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। उसी दिन, पुलिस ने नाबालिग को भी हिरासत में लेकर राजकीय बाल गृह (बालिका) भेज दिया, जहाँ वह वर्तमान में अपने नवजात शिशु के साथ रह रही है।
याचिकाकर्ता की दलीलें
याचिकाकर्ता के वकील एस.सी. तिवारी ने नाबालिग की रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के के.पी. थिम्मप्पा गौड़ा बनाम कर्नाटक राज्य (2011) के फैसले का हवाला दिया। उन्होंने तर्क दिया कि उस मामले में पीड़िता की उम्र 16 साल से अधिक होने के कारण सहमति से बनाए गए संबंध को बलात्कार नहीं माना गया था। वकील ने यह भी दलील दी कि चूँकि दोनों की शादी हो चुकी थी और पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं थी, इसलिए पूर्ववर्ती भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के अपवाद 2 के आधार पर यह बलात्कार का मामला नहीं बनता।
कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वे एक ऐसे कानूनी ढांचे पर आधारित हैं जिसमें “व्यापक परिवर्तन” हो चुका है।
पीठ ने कहा कि थिम्मप्पा गौड़ा का मामला उस समय के कानून के आधार पर तय किया गया था, जब सहमति की उम्र 16 साल थी, लेकिन तब से कानूनी परिदृश्य काफी बदल गया है। इसी तरह, पुराने IPC के वैवाहिक बलात्कार अपवाद पर आधारित तर्क को भी “गलत” माना गया, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इंडिपेंडेंट थॉट बनाम भारत संघ (2017) मामले में इस अपवाद की व्याख्या करते हुए उम्र को 16 से बढ़ाकर 18 साल कर दिया था।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि मौजूदा मामले का फैसला नई भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत किया जाना चाहिए, जो 01.07.2024 से लागू हुई है। विचाराधीन अपराध 03.07.2025 को हुआ, जो BNS के प्रभावी होने के बाद का है।
फैसले में BNS की धारा 63 का हवाला दिया गया, जो बलात्कार को परिभाषित करती है। विशेष रूप से, धारा 63(vi) में कहा गया है कि “अठारह वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ उसकी सहमति से या बिना सहमति के” यौन संबंध बनाना बलात्कार है। कोर्ट ने धारा 63 के अपवाद 2 पर भी प्रकाश डाला, जो स्पष्ट करता है: “किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध या यौन क्रियाएं, जबकि पत्नी की आयु अठारह वर्ष से कम नहीं है, बलात्कार नहीं है।”
पीठ ने टिप्पणी की, “कानूनी संदर्भ बहुत बदल गया है… BNS, जो भारतीय दंड संहिता का उत्तराधिकारी विधान है और 01.07.2024 से लागू हुआ है, के तहत सहमति की उम्र 18 वर्ष निर्धारित की गई है।”
कोर्ट ने यह भी चिंता व्यक्त की कि नाबालिग को उसकी सास की हिरासत में सौंपने से इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि पति के रिहा होने पर वे साथ नहीं रहेंगे। कोर्ट ने कहा, “एक नाबालिग को एक वयस्क के साथ रहने की अनुमति देना पति को POCSO अधिनियम के तहत दंडनीय अपराधों के लिए भी उत्तरदायी बना देगा।” चूँकि नाबालिग याचिकाकर्ता ने अपने माता-पिता के घर लौटने से इनकार कर दिया था, इसलिए उसे बाल गृह में रखना ही एकमात्र विकल्प था।
अंतिम निर्णय और निर्देश
कोर्ट ने रिहाई की मुख्य प्रार्थना को अस्वीकार करते हुए, नाबालिग माँ और उसके नवजात बच्चे से जुड़े “मानवीय पहलू” पर विचार किया। याचिका का निस्तारण निम्नलिखित निर्देशों के साथ किया गया:
- याचिकाकर्ता को 05.10.2026 को 18 वर्ष की आयु पूरी करने पर राजकीय बाल गृह (बालिका) से रिहा कर दिया जाएगा।
- उसकी सास को भावनात्मक समर्थन के लिए घर के नियमों के अनुसार उससे और बच्चे से नियमित रूप से मिलने की अनुमति है, लेकिन वे खाने-पीने का सामान नहीं ले जा सकेंगी।
- राजकीय बाल गृह के प्रभारी को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि याचिकाकर्ता और उसके बच्चे को उनके स्वास्थ्य और कल्याण के लिए अनुकूल परिस्थितियों में रखा जाए।
- मुख्य चिकित्सा अधिकारी, कानपुर नगर, यह सुनिश्चित करेंगे कि महीने में कम से कम दो बार एक डॉक्टर उनकी जांच करे और एक बाल रोग विशेषज्ञ को कॉल पर उपलब्ध कराया जाए।
- जिला न्यायाधीश, कानपुर देहात, को एक वरिष्ठ महिला न्यायिक अधिकारी को महीने में कम से कम एक बार याचिकाकर्ता और उसके बच्चे से मिलने के लिए नियुक्त करने का निर्देश दिया गया है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोर्ट के निर्देशों का पालन हो रहा है और किसी भी उल्लंघन की रिपोर्ट हाईकोर्ट को दी जाए।