इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में वकीलों द्वारा की जाने वाली लगातार हड़तालों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिसमें पूरे राज्य में ऐसी कार्रवाइयों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है। न्यायालय ने कहा कि हड़ताल करना सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन होगा और इसे न्यायालय की अवमानना माना जा सकता है।
प्रयागराज के जिला बार एसोसिएशन के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही की सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी की खंडपीठ ने कहा कि वकीलों द्वारा हड़ताल करने की प्रथा न्यायिक कार्यवाही को बाधित करती है और कानूनी प्रक्रिया को कमजोर करती है।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने हड़ताल के कारण होने वाले अनावश्यक व्यवधानों के बिना अदालती कार्यवाही के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की है। वे पूरे राज्य में कानूनी प्रथाओं में अनुशासन और शिष्टाचार बनाए रखने की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं।
बार एसोसिएशनों को न्यायालय का निर्देश
अदालत का यह निर्णय प्रयागराज के जिला बार एसोसिएशन द्वारा किए जाने वाले लगातार व्यवधानों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करता है, जिससे न केवल न्यायपालिका का कामकाज प्रभावित होता है, बल्कि याचिकाकर्ताओं को भी काफी असुविधा होती है। परिणामस्वरूप, न्यायालय ने कड़ा रुख अपनाते हुए न केवल बार काउंसिल ऑफ इंडिया बल्कि स्थानीय बार एसोसिएशनों को भी निर्देश दिया है कि वे जिला न्यायालयों में किसी भी हड़ताल को रोकने के लिए इस निर्देश का पूर्ण रूप से पालन करें।
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भविष्य में अनुपालन और सुनवाई
हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई 7 अगस्त के लिए निर्धारित की है, जहाँ उसे उत्तर प्रदेश भर की जिला अदालतों से अपने आदेशों के अनुपालन पर रिपोर्ट मिलने की उम्मीद है। प्रारंभिक रिपोर्टों से पता चला था कि वकीलों की हड़ताल ने अधिकांश जिला अदालतों में न्यायिक कार्य को काफी हद तक बाधित किया है, जिसके कारण न्यायालय को यह सक्रिय कदम उठाना पड़ा।