इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बांके बिहारी मंदिर पर अध्यादेश लाने की राज्य सरकार की क्षमता पर यूपी सरकार से मांगा जवाब

इलाहाबाद हाईकोर्ट ‘उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश, 2025’ की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर गंभीरता से विचार कर रहा है। 21 जुलाई 2025 के आदेश में अदालत ने इस पर ध्यान दिया कि राज्य सरकार को एक निजी मंदिर के नियंत्रण के लिए ऐसा अध्यादेश लाने की संवैधानिक क्षमता है या नहीं। अदालत ने माना कि मामला विचार योग्य है और राज्य सरकार को आपत्तियों का जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। अगली सुनवाई 30 जुलाई 2025 को तय की गई है।

मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रनव गोस्वामी व अन्य बनाम सिविल जज जूनियर डिवीजन, मथुरा शीर्षक से चल रहा है, जिसमें ‘उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश, 2025’ को चुनौती दी गई है। यह अध्यादेश मंदिर के लिए एक सरकारी नियंत्रित ट्रस्ट बनाने की व्यवस्था करता है।

सुनवाई और एमिकस क्यूरी की दलीलें
21 जुलाई 2025 को न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ के समक्ष सुनवाई हुई, जिसमें अदालत द्वारा नियुक्त एमिकस क्यूरी श्री संजय गोस्वामी ने राज्य सरकार के विधायी कदम की नींव पर ही सवाल उठा दिए।

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श्री गोस्वामी ने दलील दी कि मथुरा का बांके बिहारी जी मंदिर एक निजी संस्था है, जहां धार्मिक गतिविधियां स्व. स्वामी हरिदास जी के उत्तराधिकारी गोस्वामियों द्वारा परंपरागत रूप से संचालित होती आ रही हैं।

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एमिकस क्यूरी ने कहा कि अध्यादेश के जरिए राज्य सरकार “पीछे के दरवाजे से मंदिर का नियंत्रण अपने हाथ में लेना चाहती है।” उन्होंने विशेष रूप से अध्यादेश की धारा 5 पर आपत्ति जताई, जो न्यासी मंडल के गठन की व्यवस्था करती है। इस मंडल में वैष्णव परंपरा के नामित न्यासियों के अलावा सात पदेन सरकारी सदस्य शामिल हैं, जिनमें मथुरा के जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, नगर आयुक्त और उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जैसे पदाधिकारी आते हैं।

श्री गोस्वामी के अनुसार, इन सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति “राज्य सरकार द्वारा निजी मंदिर में प्रवेश का प्रयास” है, जो “हिंदुओं के अधिकारों में राज्य सरकार द्वारा अतिक्रमण” के बराबर है। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार की भूमिका केवल “मंदिर के बाहर से भीड़ प्रबंधन और प्रशासन तक” सीमित होनी चाहिए, न कि धार्मिक कार्यों में दखल देने तक।

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संविधान का हवाला देते हुए श्री गोस्वामी ने कहा, “संविधान राज्य को किसी धर्म का पालन करने या किसी मंदिर का नियंत्रण लेने की अनुमति नहीं देता।” उन्होंने आशंका जताई कि यह अध्यादेश भविष्य के लिए एक मिसाल बन सकता है, जिससे “सरकार आगे अन्य मंदिरों का भी नियंत्रण ले सकती है।” उन्होंने तमिलनाडु के मंदिरों की स्थिति का भी उदाहरण दिया, जो वर्तमान में राज्य नियंत्रण में हैं।

उनका मानना था कि संविधान “राज्य सरकार को इस प्रकार के धार्मिक क्षेत्रों में हस्तक्षेप या नियंत्रण करने से रोकता है।”

अदालत का आदेश और आगे की सुनवाई
दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि एमिकस क्यूरी ने “राज्य सरकार की अध्यादेश जारी करने की क्षमता पर गंभीर सवाल उठाए हैं।”

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अदालत ने माना कि मामला गंभीर विचार का है और आदेश में लिखा, “मामला विचारणीय है।” इसके अलावा अदालत को बताया गया कि यह मामला माननीय सर्वोच्च न्यायालय में 29 जुलाई 2025 को सूचीबद्ध है।

हाईकोर्ट ने सुनवाई जारी रखने का निर्णय लिया है और राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि “एमिकस क्यूरी द्वारा उठाए गए तर्कों का जवाब दाखिल किया जाए।” यह मामला अब 30 जुलाई 2025 को फिर से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

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