इलाहाबाद हाईकोर्ट में जजों की 81 रिक्तियों पर दायर जनहित याचिका से मुख्य न्यायाधीश ने खुद को अलग किया

इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने 81 खाली न्यायिक पदों और 11.55 लाख से अधिक लंबित मामलों से संबंधित जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। यह याचिका वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश त्रिवेदी ने अधिवक्ताओं शाश्वत आनंद, सैयद अहमद फैजान और सौमित्र आनंद के माध्यम से दायर की थी, जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता एस.एफ.ए. नक़वी ने त्रिवेदी की ओर से दलीलें पेश कीं।

याचिका में तर्क दिया गया है कि न्यायिक नियुक्तियों में देरी संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करती है और हाईकोर्ट के पास अपनी संस्थागत शक्ति को बनाए रखने का पर्याप्त संवैधानिक अधिकार है। इसमें आग्रह किया गया है कि कम से कम 81 या उससे अधिक नामों की तत्काल सिफारिश की जाए, ताकि रिक्तियों को बिना किसी देरी के भरा जा सके।

जनहित याचिका के अनुसार, इलाहाबाद हाईकोर्ट में वर्तमान में मात्र 79 न्यायाधीश कार्यरत हैं, जबकि स्वीकृत संख्या 160 है। इस कारण प्रत्येक न्यायाधीश को औसतन 14,600 से अधिक लंबित मामलों की सुनवाई करनी पड़ रही है। याचिका में कहा गया है कि न्यायाधीशों की भारी कमी के कारण न्यायिक कार्यवाही बाधित हो रही है और न्याय प्रक्रिया में अनुचित विलंब हो रहा है।

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संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर इस जनहित याचिका में न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए कड़े निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में तर्क दिया गया है कि न्यायालय को अपने अधिकारों का प्रयोग कर आवश्यक निर्देश जारी करने चाहिए, ताकि न्यायिक प्रणाली को और अधिक गिरावट से बचाया जा सके।

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याचिका में केंद्र सरकार के कानून और न्याय मंत्री के संसद में दिए गए जवाब का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें यह स्वीकार किया गया कि उच्च न्यायालय समयबद्ध प्रक्रिया के अनुसार न्यायिक नियुक्तियाँ करने में विफल रहे हैं। लोकसभा में 3 फरवरी 2023 को पूछे गए अप्रतिस्वीकृत प्रश्न संख्या 413 के जवाब में मंत्री ने खुलासा किया था कि फरवरी 2023 तक स्वीकृत 160 पदों के मुकाबले केवल 96 न्यायाधीश कार्यरत थे, जबकि 64 पद रिक्त पड़े थे।

इसके अलावा, याचिका में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की रिक्तियों पर बार-बार व्यक्त की गई चिंताओं का भी उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की चेतावनियों के बावजूद नियुक्ति प्रक्रिया रुकी हुई है, जिससे न्यायिक प्रशासन लगभग ठप पड़ने की कगार पर है।

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याचिका में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और हाईकोर्ट प्रशासन से लंबित न्यायिक नियुक्तियों, सिफारिशों और इस संकट से निपटने के लिए उठाए गए कदमों पर एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करने की मांग की गई है। इसके साथ ही, न्यायिक रिक्तियों, सिफारिशों और नियुक्तियों पर नज़र रखने के लिए एक वास्तविक समय (रियल-टाइम) सार्वजनिक डेटाबेस तैयार करने की भी मांग की गई है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित हो सके।

देश की 24 करोड़ से अधिक जनसंख्या को सेवा देने वाला इलाहाबाद हाईकोर्ट देश के सबसे व्यस्त संवैधानिक न्यायालयों में से एक है। याचिका में चेतावनी दी गई है कि यदि तुरंत कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो लंबित मामलों की संख्या और बढ़ती जाएगी, जिससे जनता के लिए न्याय की पहुंच कठिन होती चली जाएगी।

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