इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने शैक्षणिक सत्र 2025–26 के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी डी.फार्मा पाठ्यक्रमों की काउंसलिंग अनुसूची को रद्द कर दिया है। अदालत ने इसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई समयसीमा का उल्लंघन मानते हुए यह फैसला दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने 9 जुलाई 2025 को कई फार्मेसी कॉलेजों द्वारा दायर याचिकाओं पर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता, जो डी.फार्मा पाठ्यक्रम संचालित कर रहे हैं और उत्तर प्रदेश तकनीकी शिक्षा बोर्ड से संबद्ध हैं, ने राज्य सरकार द्वारा जारी काउंसलिंग शेड्यूल को चुनौती दी थी। उनका तर्क था कि फार्मेसी अधिनियम, 1948 के तहत फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) ही फार्मेसी संस्थानों को मान्यता देने के लिए अधिकृत संस्था है। शैक्षणिक सत्र 2025–26 के लिए उन्होंने PCI के समक्ष अनुमोदन के लिए आवेदन किया था, लेकिन PCI ने अब तक निर्णय नहीं दिया था, और राज्य सरकार ने उससे पहले ही काउंसलिंग की तिथियां जारी कर दी थीं।
सुप्रीम कोर्ट ने पार्श्वनाथ चैरिटेबल ट्रस्ट बनाम AICTE (2013) 3 SCC 385 में अनुमोदन और काउंसलिंग प्रक्रिया के लिए निश्चित समयसीमा तय की थी। वर्तमान वर्ष में, सिविल अपील संख्या 9048/2012 में एम.ए. नंबर 711/2025 पर सुप्रीम कोर्ट ने अनुमोदन की अंतिम तिथि 31 अगस्त 2025, अपील/पालन प्रक्रिया की अंतिम तिथि 30 सितंबर 2025, और काउंसलिंग की अंतिम तिथि 30 अक्टूबर 2025 तक बढ़ा दी थी।

याचिकाकर्ताओं के तर्क:
याचिकाकर्ताओं के वकील श्री रजत राजन सिंह ने कहा कि 27 जून से 26 जुलाई 2025 तक चलने वाली राज्य सरकार की काउंसलिंग समयसीमा सुप्रीम कोर्ट के विस्तारित निर्देशों का उल्लंघन करती है, जिससे उनके संस्थान प्रक्रिया से बाहर हो जाएंगे। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के पिछले निर्णय HMS कॉलेज ऑफ फार्मेसी, बुलंदशहर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (रिट–सी संख्या 8389/2023) का हवाला दिया, जिसमें इसी तरह की जल्दी की गई काउंसलिंग को रद्द किया गया था।
राज्य और PCI के तर्क:
राज्य सरकार ने दलील दी कि जल्दी काउंसलिंग कराने का उद्देश्य यह था कि छात्र अन्य राज्यों में न चले जाएं और लगभग 181 निर्धारित कक्षाओं की उपस्थिति सुनिश्चित की जा सके, जो डिप्लोमा प्रदान करने के लिए आवश्यक होती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि छात्रों को “फ्रीज/फ्लोट” विकल्प दिया गया है, जिससे वे बाद में अनुमोदित कॉलेजों में स्थानांतरित हो सकते हैं।
PCI के वकील रवि सिंह ने अदालत को आश्वस्त किया कि लंबित अनुमोदन आवेदनों पर शीघ्र निर्णय लिया जाएगा।
अदालत का विश्लेषण:
न्यायमूर्ति भाटिया ने कहा कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों में संशोधन के लिए कोई प्रयास नहीं किया और सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय समयसीमा के समाप्त होने से पहले काउंसलिंग शुरू करना “पूरी तरह अनुचित” है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की जल्दबाजी फार्मेसी अधिनियम के उद्देश्य को विफल करती है और योग्य संस्थानों को काउंसलिंग में भाग लेने से वंचित कर देती है।
अदालत ने PCI को निर्देश दिया कि वह लंबित अनुमोदन आवेदनों पर दो सप्ताह के भीतर निर्णय ले और सुझाव दिया कि PCI वार्षिक अनुमोदन के बजाय पांच वर्षों जैसी लंबी अवधि के लिए अनुमोदन पर नीति बनाए, ताकि प्रत्येक वर्ष की न्यायिक लड़ाई समाप्त हो और शैक्षणिक सततता सुनिश्चित हो सके।
निर्णय:
हाईकोर्ट ने पूरे काउंसलिंग शेड्यूल को रद्द कर दिया और कहा कि राज्य सरकार केवल सुप्रीम कोर्ट द्वारा विस्तारित समयसीमा समाप्त होने के बाद ही काउंसलिंग कर सकती है।
- मामले: रिट–सी संख्या 6289/2025, 6324/2025, 6367/2025, 6531/2025, 6535/2025