इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर एवं असामाजिक क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1986 के कथित दुरुपयोग पर गंभीर आपत्ति जताते हुए मुज़फ्फरनगर के ज़िलाधिकारी (डीएम), वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) और थाना प्रभारी (एसएचओ) को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होकर अपने “दुराचार और लापरवाही” पर स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने यह निर्देश आरोपी मंशाद उर्फ सोना की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया, जिसे गैंगस्टर एक्ट की धारा 2/3 के तहत जेल में बंद किया गया था। कोर्ट ने उसे जमानत प्रदान करते हुए पाया कि कानून का प्रयोग मनमाने और दोहराए गए तरीके से केवल हिरासत लंबी करने के उद्देश्य से किया गया।
कोर्ट ने यह भी देखा कि आरोपी के विरुद्ध गैंगस्टर एक्ट पुराने आपराधिक मामलों के आधार पर लगाया गया था, जिन्हें पहले ही एक बार इस्तेमाल किया जा चुका था। अदालत ने इसे कानून के दुरुपयोग की सुनियोजित रणनीति करार दिया। न्यायमूर्ति देशवाल ने टिप्पणी की, “एसएचओ का आचरण एक्ट के स्पष्ट दुरुपयोग को दर्शाता है।”

इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने कहा कि एसएसपी और डीएम, दोनों उत्तर प्रदेश गैंगस्टर नियमावली, 2021 के नियम 5(3)(क) के अंतर्गत अपनी वैधानिक जिम्मेदारी निभाने में विफल रहे, जो ऐसी कार्रवाई को अनुमोदन देने से पहले संयुक्त बैठक में सोच-समझ कर निर्णय लेने की अपेक्षा करता है। न्यायाधीश ने टिप्पणी की, “यह न केवल एसएचओ की मनमानी को दर्शाता है, बल्कि एसएसपी और ज़िलाधिकारी, मुज़फ्फरनगर की घोर लापरवाही को भी उजागर करता है।”
कोर्ट ने गैंगस्टर एक्ट के यांत्रिक और बार-बार किए जा रहे प्रयोग को न्यायिक मिसालों और राज्य सरकार की उन दिशानिर्देशों के उल्लंघन के रूप में देखा, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा गोरख नाथ मिश्र बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में जारी निर्देशों के अनुपालन में बनाए गए थे। हाईकोर्ट ने दोहराया कि गैंगस्टर एक्ट का उपयोग हल्के में नहीं किया जाना चाहिए, खासकर तब जब इसका परिणाम लंबे समय तक कारावास होता हो।
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गैंगस्टर एक्ट के दुरुपयोग को लेकर बार-बार जताई गई चिंताओं का भी उल्लेख किया। वर्ष 2024 में शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को स्पष्ट मानक तय करने का निर्देश दिया था, जिसके आधार पर 2 दिसंबर 2024 को राज्य सरकार ने एक चेकलिस्ट और प्रक्रिया संबंधी दिशानिर्देश जारी किए थे। बाद में इन्हें सुप्रीम कोर्ट ने विनोद बिहारी लाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में अनुमोदित किया था।
20 जून को पारित आदेश में हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि संबंधित मुज़फ्फरनगर अधिकारी अगली सुनवाई पर व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हों और अपने आचरण पर स्पष्टीकरण दें। साथ ही अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।