राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के उप पुलिस अधीक्षक तनज़ील अहमद और उनकी पत्नी फरज़ाना की हत्या से जुड़े नौ साल पुराने मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विभाजित फैसला सुनाया है।
दो न्यायाधीशों की पीठ में शामिल न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता ने आरोपी रैय्यान को बरी किए जाने के पक्ष में राय दी, जबकि न्यायमूर्ति हरवीर सिंह ने बिजनौर की ट्रायल कोर्ट के मई 2022 के फैसले को आंशिक रूप से बरकरार रखते हुए उसकी दोषसिद्धि को सही ठहराया। हालांकि, न्यायमूर्ति सिंह ने मृत्युदंड को आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया।
दोनों न्यायाधीशों के मत अलग-अलग होने के कारण मामले को अब मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली के समक्ष बड़ी पीठ के गठन के लिए भेज दिया गया है, जो मामले की पुनः सुनवाई करेगी।
न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता ने अपने फैसले में कहा कि बचाव पक्ष ने अभियोजन के मामले में गंभीर चूक और विरोधाभासों को उजागर किया है, खासकर प्रत्यक्षदर्शी गवाहों की गवाही में। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि मृतक अधिकारी के भाई और बेटी ने एफआईआर दर्ज कराते समय हमलावरों के नाम नहीं बताए थे, जिससे बाद में दिए गए बयानों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होते हैं।
वहीं, न्यायमूर्ति हरवीर सिंह ने अभियोजन के संस्करण को स्वीकार करते हुए रैय्यान की दोषसिद्धि को सही माना। हालांकि, सजा के प्रश्न पर उन्होंने ट्रायल कोर्ट से अलग दृष्टिकोण अपनाते हुए मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलने का आदेश दिया।
यह घटना अप्रैल 2016 की है। उस समय एनआईए में उप पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात तनज़ील अहमद अपनी पत्नी फरज़ाना के साथ उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के क़स्बा स्योहारा में एक शादी समारोह में शामिल होकर लौट रहे थे।
जब वे कार से यात्रा कर रहे थे, तभी दो बाइक सवार हमलावरों ने उनकी गाड़ी को ओवरटेक कर कथित तौर पर कई गोलियां चलाईं। तनज़ील अहमद की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि गंभीर रूप से घायल फरज़ाना ने इलाज के दौरान दस दिन बाद दम तोड़ दिया। उस समय तनज़ील अहमद कई आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच कर रहे थे।
अभियोजन के अनुसार, रैय्यान और मुनीर इस हमले में शामिल थे। हालांकि, मुनीर की हाईकोर्ट में अपील का फैसला आने से पहले ही मृत्यु हो गई।
बिजनौर की सत्र अदालत ने इस मामले में कुल 19 गवाहों की गवाही दर्ज की थी, जिनमें तनज़ील अहमद के भाई रागिब मसूद, प्रत्यक्षदर्शी हसीब और मृतक अधिकारी की बेटी शामिल थे। मई 2022 में सत्र अदालत ने रैय्यान और मुनीर को हत्या का दोषी ठहराते हुए मृत्युदंड की सजा सुनाई थी और दोनों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था।
अब इलाहाबाद हाईकोर्ट में मतभेद के चलते इस हाई-प्रोफाइल मामले का अंतिम फैसला बड़ी पीठ के निर्णय पर निर्भर करेगा।

