इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उस पूर्व एसपी की जानकारी मांगी जिसने जज को थाने ले जाने की धमकी दी थी; आचरण को बताया ‘गुंडे जैसा’

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1988 के एक मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस के एक पूर्व अधिकारी के आचरण पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की है। कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक (DGP), उत्तर प्रदेश को एक पूर्व पुलिस अधीक्षक (SP) बी.के. भोला की वर्तमान स्थिति के बारे में व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। उक्त अधिकारी पर आरोप है कि उन्होंने ललितपुर में तैनाती के दौरान वहां के सत्र न्यायाधीश को धमकाया था कि यदि कोर्ट ने कुछ रिकॉर्ड तलब किए, तो वह जज को पुलिस थाने ले जाएंगे।

न्यायमूर्ति जे.जे. मुनीर और न्यायमूर्ति संजीव कुमार की खंडपीठ ने 1988 से लंबित एक आपराधिक अपील की सुनवाई के दौरान निचली अदालत के फैसले में दर्ज टिप्पणियों को अत्यंत गंभीर माना। हाईकोर्ट ने पाया कि तत्कालीन एसपी, ललितपुर का व्यवहार एक पुलिस अधिकारी की तरह न होकर किसी “गुंडे” जैसा था। कोर्ट ने डीजीपी को निर्देश दिया है कि वह बताएं कि क्या संबंधित अधिकारी जीवित हैं, और यदि हैं, तो उनके खिलाफ ट्रायल कोर्ट की सिफारिशों पर अब तक क्या कार्रवाई की गई है।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला सत्र परीक्षण संख्या 82 ऑफ 1986 (राज्य बनाम वृंदावन व अन्य) और सत्र परीक्षण संख्या 105 ऑफ 1986 (राज्य बनाम गया उर्फ गया प्रसाद) से जुड़ा है। इस मामले में फैसला 30 अप्रैल, 1988 को ललितपुर के तत्कालीन सत्र न्यायाधीश श्री एल.एन. राय द्वारा सुनाया गया था। यह मामला थाना नराहट, जिला ललितपुर से संबंधित आईपीसी की धारा 147, 148, 307/149 और 302/149 के तहत अपराधों के बारे में था।

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दोषसिद्धि के खिलाफ दायर अपील (क्रिमिनल अपील संख्या 1056 ऑफ 1988) पर सुनवाई करते हुए, हाईकोर्ट का ध्यान ट्रायल कोर्ट के फैसले के पैरा 190 और 191 की ओर गया, जिसमें तत्कालीन पुलिस अधीक्षक के आचरण का उल्लेख किया गया था।

पुलिस के आचरण पर हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी

हाईकोर्ट ने ट्रायल जज द्वारा दर्ज की गई टिप्पणियों पर गहरा आश्चर्य और क्षोभ व्यक्त किया। पीठ ने कहा कि बी.के. भोला का आचरण “बेहद गंभीर” था और यह दर्शाता है कि अधिकारी में न्यायिक अधिकारी को डराने का “दुस्साहस” (Audacity) था।

आदेश में कोर्ट ने कहा:

“टिप्पणियां इस हद तक हैं कि पुलिस अधीक्षक, ललितपुर, बी.के. भोला ने विद्वान ट्रायल जज को यह धमकी देने का दुस्साहस किया कि यदि उन्होंने पुलिस से कुछ रिकॉर्ड या वायरलेस संदेश तलब किए, या एसपी को बचाव पक्ष के गवाह के रूप में पेश होने के लिए मजबूर किया, तो वह उन्हें खींचकर पुलिस थाने ले जाएंगे।”

खंडपीठ ने यह भी नोट किया कि हालांकि ट्रायल जज ने बी.के. भोला के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की थी, लेकिन उन्होंने दरियादिली दिखाते हुए आपराधिक अवमानना (Criminal Contempt) की कार्यवाही शुरू करने के लिए हाईकोर्ट को संदर्भ (Reference) नहीं भेजा।

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स्थिति की गंभीरता को रेखांकित करते हुए हाईकोर्ट ने कहा:

“आक्षेपित निर्णय के पैरा 190 और 191 में विद्वान ट्रायल जज की टिप्पणियां इतनी damning (दोषपूर्ण/गंभीर) हैं कि इनकी अनदेखी नहीं की जा सकती।” “…विद्वान सत्र न्यायाधीश ने पाया कि जिला पुलिस अधीक्षक ने एक गुंडे की तरह व्यवहार किया और विद्वान ट्रायल जज को धमकाया।”

कोर्ट के निर्देश

चूंकि यह मामला लगभग चार दशक पुराना है, इसलिए पीठ ने टिप्पणी की, “हम नहीं जानते कि बी.के. भोला, जो अब तक संभवतः सेवानिवृत्त हो चुके होंगे, इस नश्वर दुनिया में हैं या नहीं।”

अदालत ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (DGP) को निम्नलिखित निर्देश जारी किए हैं:

  1. 9 दिसंबर, 2025 या उससे पहले अपना व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करें।
  2. यह बताएं कि क्या बी.के. भोला अभी जीवित हैं।
  3. यदि वह जीवित हैं, तो उनका पूरा विवरण, आवासीय पता, और यह जानकारी दी जाए कि क्या वह अभी भी सेवा में हैं या पेंशन प्राप्त कर रहे हैं।
  4. उनकी स्थिति के बारे में यदि कोई अन्य रिपोर्ट है, तो उसका भी खुलासा किया जाए।
  5. विशेष रूप से यह रिपोर्ट दी जाए कि “इस अपील में चुनौती दिए गए निर्णय के पैरा 190 और 191 में विद्वान ट्रायल जज के निर्देशों के आधार पर बी.के. भोला के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई थी।”
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कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हालांकि फैसले में कुछ अन्य अधिकारियों के नाम भी हैं, लेकिन वे “फुटकर अधिकारी” (Sundry officers) हैं और मुख्य ध्यान पुलिस अधीक्षक पर ही रहेगा क्योंकि उनका कदाचार अत्यंत गंभीर प्रकृति का था।

रजिस्ट्रार (अनुपालन) को निर्देश दिया गया है कि वे अगले 24 घंटों के भीतर इस आदेश को डीजीपी, यूपी को संप्रेषित करें। मामले की अगली सुनवाई 9 दिसंबर, 2025 को होगी।

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