इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि संविधान का अनुच्छेद 30(1) भले ही अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार देता है, लेकिन यह अधिकार उन्हें शिक्षा की गुणवत्ता और अकादमिक मानकों को बनाए रखने के लिए बनाए गए युक्तियुक्त सरकारी नियमों से छूट नहीं देता।
न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकल पीठ ने यह फैसला 17 अक्टूबर को सुनाया। अदालत ने मदरसा अरबिया शम्सुल उलूम, सिकरीगंज, एहाता नवाब (गोरखपुर) और अन्य द्वारा दायर याचिका स्वीकार करते हुए मदरसा प्रबंधन द्वारा सहायक अध्यापकों और एक लिपिक की नियुक्ति के लिए जारी विज्ञापन को अवैध घोषित कर रद्द कर दिया।
न्यायालय ने कहा,
 
“संविधान निस्संदेह अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार देता है, परंतु इस अधिकार को इस सीमा तक नहीं फैलाया जा सकता कि वे शिक्षा की उत्कृष्टता और मानकों को बनाए रखने के लिए बनाए गए युक्तियुक्त नियमों से मुक्त हो जाएं।”
अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि राज्य सरकार द्वारा शिक्षक पात्रता और नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़ी नीतियां तय किए बिना भर्ती विज्ञापन जारी करना “कानून की दृष्टि में त्रुटिपूर्ण” है और अनुच्छेद 30(1) की भावना के विपरीत है।
न्यायालय ने पाया कि राज्य सरकार ने 20 मई के शासनादेश में मदरसों में शिक्षकों की नियुक्ति से संबंधित स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए थे। इस आदेश में कहा गया था कि मदरसों में भर्ती करते समय इन सरकारी निर्देशों का सख्ती से पालन किया जाए।
इसके बावजूद, संबंधित मदरसे ने पाँच सहायक अध्यापक और एक लिपिक के पदों के लिए विज्ञापन जारी कर चयन प्रक्रिया आगे बढ़ाई। अदालत ने कहा कि यह कार्यवाही न केवल शासनादेश की अवहेलना है, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय सिद्धांतों के भी विपरीत है।
हाईकोर्ट ने उक्त विज्ञापन को रद्द करते हुए कहा कि इसके आधार पर की गई कोई भी नियुक्ति स्वतः अवैध (per se illegal) होगी।
न्यायमूर्ति चौहान ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे नियुक्त व्यक्तियों को न तो कोई आपत्ति दर्ज करने का अधिकार है और न ही सुनवाई का अवसर दिया जा सकता है, क्योंकि उनकी नियुक्ति मूल रूप से कानून के विपरीत है।
अदालत ने यह दोहराया कि अनुच्छेद 30(1) के तहत अल्पसंख्यक संस्थानों को दिया गया अधिकार पूर्ण स्वतंत्रता नहीं है। यह अधिकार युक्तियुक्त नियामक ढांचे के भीतर ही प्रयोग किया जा सकता है, ताकि शिक्षा की गुणवत्ता, पारदर्शिता और अकादमिक उत्कृष्टता बनी रहे।
अल्पसंख्यक संस्थान संविधान के तहत स्वायत्त अवश्य हैं, परंतु उन्हें राज्य सरकार द्वारा बनाए गए शिक्षा संबंधी मानकों और नीतियों का पालन करना अनिवार्य है।


 
                                     
 
        



