इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्यभर के न्यायिक अधिकारियों को यह स्पष्ट निर्देश दिया है कि वे अपने फैसलों में घायल या मृतक व्यक्ति की चोटों का उल्लेख अनिवार्य रूप से करें। अदालत ने कहा कि यह एक आवश्यक न्यायिक अभ्यास है, जिसे कई मौकों पर नजरअंदाज किया जा रहा है।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा और न्यायमूर्ति अजय कुमार की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान की, जब उसने सुनील कुमार यादव की आपराधिक अपील को खारिज करते हुए पाया कि ट्रायल कोर्ट ने अपने फैसले में मृतक के शरीर पर पाई गई चोटों का कोई उल्लेख नहीं किया था।
पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट के 3 मार्च 1982 और 3 मार्च 2002 के दो परिपत्रों में साफ-साफ निर्देश दिया गया है कि न्यायिक अधिकारी अपने निर्णयों में मेडिकल रिपोर्ट में दर्ज सभी चोटों का विवरण अवश्य दर्ज करें। अदालत ने कहा कि इस तरह की जानकारी न्यायिक निर्णय की संपूर्णता और उसकी विश्वसनीयता के लिए अत्यंत आवश्यक है।
अदालत ने टिप्पणी की:
“हम वेदना के साथ देखते हैं कि ट्रायल जज ने अपने निर्णय में मृतक के शरीर पर पाई गई चोटों का उल्लेख नहीं किया है… हमें आशा और विश्वास है कि न्यायिक अधिकारी इन परिपत्रों का पालन करेंगे।”
हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि इस आदेश की प्रति उत्तर प्रदेश के सभी न्यायिक अधिकारियों को भेजी जाए, ताकि भविष्य में पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित हो सके।




