इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम समुदाय के ‘नबी पैगंबर’ के खिलाफ कथित आपत्तिजनक फेसबुक पोस्ट करने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया है। अदालत ने कहा कि पोस्ट में प्रयुक्त शब्द प्रथम दृष्टया धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए “जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे” से किए गए प्रतीत होते हैं।
न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव ने मनीष तिवारी द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 528 के तहत हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्तियों के प्रयोग के लिए कोई पर्याप्त आधार नहीं बनता।
अदालत ने स्पष्ट किया कि BNSS की धारा 528 के तहत निहित असाधारण अधिकारों का प्रयोग अत्यंत सीमित परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए। समन के चरण पर हाईकोर्ट से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह अभियुक्त के बचाव पक्ष की जांच करते हुए “मिनी ट्रायल” करे।
अदालत ने कहा,
“वर्तमान मामले में BNSS की धारा 528 के अंतर्गत इस न्यायालय के असाधारण अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने हेतु कोई पर्याप्त आधार नहीं बनता।”
अपने 2 दिसंबर के आदेश में अदालत ने आगे कहा,
“इस स्तर पर यह नहीं कहा जा सकता कि आवेदक के विरुद्ध कोई अपराध बनता ही नहीं है। झूठे फंसाए जाने के आवेदक के कथन तथ्यात्मक विवाद हैं, जिनका उचित निस्तारण साक्ष्यों के आधार पर परीक्षण न्यायालय द्वारा किया जाना आवश्यक है।”
अभियोजन के अनुसार, आवेदक पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 302 (किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के उद्देश्य से शब्दों का प्रयोग) और धारा 353(2) (झूठी जानकारी युक्त कथन का प्रकाशन या प्रसार) के तहत आरोप लगाए गए हैं। आरोप है कि उसने फेसबुक पर नबी पैगंबर के खिलाफ पोस्ट की, जिससे मुस्लिम समुदाय के लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हुईं।
आवेदक ने जुलाई में पारित आरोपपत्र और समन आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
अभियुक्त की ओर से दलील दी गई कि संबंधित मजिस्ट्रेट ने बिना समुचित न्यायिक विवेक के संज्ञान लिया। उसका मुख्य तर्क था कि उसने मुस्लिम धर्म के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की। यह भी कहा गया कि उसके किसी करीबी व्यक्ति ने उसके मोबाइल नंबर का उपयोग कर कथित टिप्पणी पोस्ट की थी।
रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री और आवेदक से संबंधित विशेष टिप्पणी का अवलोकन करने के बाद न्यायमूर्ति श्रीवास्तव ने बचाव पक्ष की दलीलों में कोई दम नहीं पाया। अदालत ने कहा कि आवेदक द्वारा उठाए गए मुद्दे तथ्यात्मक हैं, जिनका निर्णय कार्यवाही को रद्द करने के स्तर पर नहीं किया जा सकता।
इन्हीं आधारों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप से इनकार करते हुए अभियुक्त के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखने का आदेश दिया।

