लखनऊ खंडपीठ ने गुरुवार को श्रावस्ती जिले के कई मदरसों को बंद करने संबंधी नोटिसों को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि राज्य सरकार ने बिना उचित अवसर दिए और बिना मदरसों की बात सुने कार्रवाई की, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है।
न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने मदरसा मोइनुल इस्लाम कासिमिया समिति और अन्य संस्थानों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पाया कि सभी नोटिस एक ही नंबर के साथ जारी किए गए थे और यह स्पष्ट रूप से बिना दिमाग लगाए की गई कार्रवाई थी। अदालत ने जोर देकर कहा कि ऐसे कदम उठाना, बिना सुनवाई के, न्याय से वंचित करने के समान है।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि मदरसों को बंद करने जैसे कठोर कदम से पहले न तो कोई नोटिस दिया गया और न ही सुनवाई का अवसर, जिससे राज्य की कार्रवाई “गैरकानूनी और दुर्भावनापूर्ण” प्रतीत होती है। उन्होंने यह भी कहा कि सभी नोटिस एक जैसे होने से मनमानेपन का प्रमाण मिलता है।

वहीं, राज्य सरकार ने अपने कदम का बचाव करते हुए कहा कि यह कार्रवाई उत्तर प्रदेश अशासकीय अरबी और फारसी मदरसा मान्यता, प्रशासन एवं सेवाएं विनियम, 2016 के तहत की गई है।
अदालत ने, जिसने पहले 5 जून को इन नोटिसों पर रोक लगा दी थी, नोटिसों को त्रुटिपूर्ण और अस्थायी करार देते हुए रद्द कर दिया। साथ ही राज्य को यह स्वतंत्रता दी कि वह विधि के अनुरूप नए आदेश जारी कर सकता है।
इस फैसले से फिलहाल मदरसों को राहत मिली है, लेकिन राज्य सरकार को नए नोटिस जारी कर आगे की कार्रवाई करने का रास्ता खुला रखा गया है, बशर्ते उचित नोटिस और सुनवाई का अवसर प्रदान किया जाए।