आपराधिक मामले का लंबित होना पासपोर्ट नवीनीकरण से इनकार का आधार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जालौन स्थित उरई के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें सिर्फ एक लंबित आपराधिक मामले के आधार पर पासपोर्ट नवीनीकरण के आवेदन को खारिज कर दिया गया था। न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की पीठ ने मामले को नए सिरे से विचार के लिए मजिस्ट्रेट की अदालत में वापस भेज दिया है।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला आवेदक आशुतोष दीक्षित द्वारा हाईकोर्ट के समक्ष भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 528 के तहत एक आवेदन दायर करने के साथ शुरू हुआ। उन्होंने 20 मई, 2025 के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जालौन (उरई) के आदेश को चुनौती दी थी। मजिस्ट्रेट के आदेश ने श्री दीक्षित के पासपोर्ट के नवीनीकरण/पुनः जारी करने की अनुमति मांगने वाले आवेदन को खारिज कर दिया था, जिसकी वैधता 31 मार्च, 2025 को समाप्त हो गई थी।

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यह अस्वीकृति एक लंबित आपराधिक कार्यवाही, केस संख्या 4472/2021 (राज्य बनाम अंकित राजावत व अन्य) के आधार पर की गई थी, जो केस क्राइम संख्या 282/2020 से उत्पन्न हुई थी। आवेदक के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 298 और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की धारा 67 के तहत आरोप हैं।

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पक्षों की दलीलें

आवेदक के वकील, श्री प्रतीक द्विवेदी ने तर्क दिया कि निचली अदालत ने केवल लंबित आपराधिक कार्यवाही के आधार पर पासपोर्ट नवीनीकरण की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया था। उन्होंने प्रस्तुत किया कि अदालत इस तरह के मामलों के संबंध में भारत संघ द्वारा जारी दिशा-निर्देशों पर विचार करने में विफल रही। वकील ने यह भी बताया कि आवेदक को उक्त मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा 6 नवंबर, 2024 को पहले ही जमानत दे दी गई थी और वह नियमित रूप से मुकदमे में भाग ले रहा था। नतीजतन, यह तर्क दिया गया कि विद्वान अदालत द्वारा दिया गया निष्कर्ष “कानून की नजर में टिकाऊ नहीं” था।

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राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए, विद्वान अतिरिक्त शासकीय अधिवक्ता (ए.जी.ए.) ने “आवेदन में की गई प्रार्थना का पुरजोर विरोध किया, लेकिन आवेदक के वकील द्वारा दिए गए तथ्यों और प्रस्तुतियों पर कोई विवाद नहीं किया।” भारत संघ के वकील, श्री संजय द्विवेदी को भी सुना गया।

न्यायालय का विश्लेषण और निर्णय

“पक्षों के वकीलों द्वारा दी गई परस्पर विरोधी दलीलों” पर विचार करने के बाद, हाईकोर्ट ने आवेदक के वकील द्वारा उठाए गए तर्कों को उचित पाया।

न्यायालय ने पाया कि “पासपोर्ट के नवीनीकरण की मांग करने वाले आवेदन के अधिनिर्णय के समय उचित स्पष्टीकरण मांगा गया था, जिस पर उस समय विचार नहीं किया गया था और इस तरह, आक्षेपित आदेश रद्द किए जाने योग्य है।”

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इन तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, हाईकोर्ट ने आवेदन को स्वीकार कर लिया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जालौन (उरई) द्वारा पारित 20 मई, 2025 के आदेश को रद्द कर दिया गया।

मामले को संबंधित अदालत में इस निर्देश के साथ वापस भेज दिया गया कि पासपोर्ट के नवीनीकरण/पुनः जारी करने की अनुमति के लिए आवेदन पर नए सिरे से “केवल उपरोक्त टिप्पणियों के आलोक में” निर्णय लिया जाए।

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