इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक (DGP) और पुणे के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) को निर्देश दिया है कि वे भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के तहत एक व्यक्ति को भगोड़ा घोषित करने की कार्यवाही शुरू करें। यह निर्देश उस व्यक्ति द्वारा अपनी दो वर्षीय संतान को बार-बार अदालत में पेश न करने पर जारी किया गया है। यह मामला बच्चे की मां द्वारा दायर हैबियस कॉर्पस याचिका से जुड़ा है।
न्यायमूर्ति राजीव सिंह की अध्यक्षता वाली अवकाश पीठ ने BNSS की धारा 84 और 85 (जो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 82 और 83 के समतुल्य हैं) के तहत पिता की संपत्ति कुर्क करने का आदेश भी दिया, ताकि उसकी उपस्थिति सुनिश्चित की जा सके। अगली सुनवाई की तारीख 1 अगस्त तय की गई है।
याचिकाकर्ता—बच्चे की मां—ने पिछले वर्ष अदालत में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि पिता, जो मूलतः अयोध्या का रहने वाला है और वर्तमान में पुणे में रहता है, बच्चे को अवैध रूप से उसकी वैध अभिरक्षा से ले गया और तब से उसे बच्चे से मिलने नहीं दे रहा। मां का कहना था कि बच्चे की उम्र और भलाई को देखते हुए उसकी देखरेख केवल वही कर सकती है।
अदालत ने पिता के आचरण पर कड़ा असंतोष जताया और कहा कि वह पहले कुछ तारीखों पर उपस्थित हुआ था लेकिन बाद में अदालत से बचने लगा। अदालत के कई निर्देशों के बावजूद उसने बच्चे को पेश नहीं किया, जिससे पहले ही अदालत ने उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट (NBW) जारी किया था। हालांकि, जब पुणे पुलिस ने NBW की तामील की कोशिश की, तो पता चला कि वह लापता है और उसकी मां ने खुद उसके गुमशुदा होने की रिपोर्ट दर्ज कराई।
अदालत ने अपने ताजा आदेशों की त्वरित अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए वरिष्ठ रजिस्ट्रार को महाराष्ट्र DGP और पुणे CJM को निर्देश भेजने को कहा है।
यह भी सामने आया कि यह मामला पहले सुप्रीम कोर्ट तक गया था, जहां से इसे मध्यस्थता के लिए भेजा गया था। लेकिन पिता के मध्यस्थता में भाग न लेने के कारण प्रयास असफल रहा।