इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक महत्वपूर्ण आदेश में यह सवाल उठाया है कि क्या प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा बिना न्यायालयी प्रक्रिया के किसी व्यक्ति को भूमि से बेदखल किया जाना वैध है। न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने रिट याचिका संख्या – 11176/2024 (श्रीमती राजलक्ष्मी व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य) में यह मामला मुख्य न्यायाधीश के समक्ष बड़ी पीठ के लिए संदर्भित करते हुए टिप्पणी की कि यह कार्यवाही “कानून के शासन के मूल सिद्धांत को नष्ट करने” जैसी है।
पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि उन्हें 17 नवम्बर 2024 को पुलिस और राजस्व अधिकारियों ने जबरन उनकी भूमि से बेदखल कर दिया, जबकि द्वितीय अपील संख्या 131/2024 (राजलक्ष्मी व अन्य बनाम उषा सिंह व अन्य) अभी हाईकोर्ट में लंबित है। याचिका में कहा गया कि यह कार्यवाही 07.10.2024 को तत्कालीन गृह सचिव डॉ. संजीव गुप्ता द्वारा जिला अधिकारी प्रतापगढ़ को भेजे गए पत्र के आधार पर की गई, जिसमें याचिकाकर्ताओं को कथित रूप से अतिक्रमणकारी बताकर हटाने का निर्देश दिया गया।
कोर्ट ने इसे गंभीर विषय मानते हुए कहा:

“कानून की प्रक्रिया में प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा हस्तक्षेप और उल्लंघन किया जा रहा है।”
“यह ऐसा मामला नहीं है जहाँ निष्पादन न्यायालय द्वारा कोई निर्देश जारी किया गया हो, जिसके अनुपालन में कब्जा हटाया गया हो।”
अधिकारियों की स्वीकारोक्ति और जवाब:
जिला मजिस्ट्रेट, प्रतापगढ़ ने अपने हलफनामे में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि:
“याचिकाकर्ताओं को दिनांक 17.11.2024 को तत्कालीन गृह सचिव के आदेश के आधार पर ही बेदखल किया गया।”
बाद में प्रशासन ने अपनी गलती मानी और 03.05.2025 को आदेश जारी कर 05.05.2025 को याचिकाकर्ताओं को पुनः कब्जा लौटाया। कोर्ट ने कहा:
“माफी मांगी गई है। फिर भी, यह रिट याचिका निर्णय के योग्य बनी हुई है।”
डॉ. संजीव गुप्ता ने भी हलफनामा दाखिल कर कहा कि उन्होंने एक वरिष्ठ नागरिक महिला की सुरक्षा हेतु “सद्भावना में” पत्र जारी किया। उन्होंने स्वीकार किया:
“07.10.2024 को प्राप्त आवेदन के आधार पर एक वृद्ध महिला की सुरक्षा हेतु मैंने पत्र जारी किया।”
कानूनी विश्लेषण और न्यायालय की टिप्पणियाँ:
कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा:
“राज्य के अधिकारी न तो याचिकाकर्ताओं को बेदखल कर सकते थे, न ही प्रशासनिक कार्रवाई द्वारा भूमि का कब्जा अन्य पक्षकारों को सौंप सकते थे।”
“यदि कोई व्यक्ति अवैध कब्जे में भी है तो उसे भी केवल विधिक प्रक्रिया का पालन कर ही बेदखल किया जा सकता है।”
न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के Bishan Das बनाम पंजाब राज्य (AIR 1961 SC 1570) मामले का हवाला देते हुए कहा:
“राज्य और उसके अधिकारियों द्वारा की गई यह कार्यवाही कानून के शासन के मूल सिद्धांत को नष्ट करने वाली है।”
कोर्ट ने आगे कहा:
“पुलिस अथवा राजस्व अधिकारियों के समक्ष दिया गया कोई भी प्रपत्र, जो जबरन या दबाव में दिया गया हो, कानून की दृष्टि में महत्वहीन है।”
पूर्व याचिका से असहमति और बड़ी पीठ को संदर्भ:
कोर्ट को जानकारी मिली कि याचिकाकर्ता नंबर 4 के भाई रण विजय सिंह द्वारा दायर एक समान याचिका (Writ-C No. 10291/2024) को पहले खारिज किया जा चुका है। लेकिन वर्तमान पीठ ने उस निर्णय से असहमति जताते हुए कहा:
“हम इस याचिका को केवल इस कारण से खारिज करने के पक्ष में नहीं हैं कि पूर्व में Writ-C No. 10291 of 2024 को खारिज किया गया था, क्योंकि ऐसा करने से हम एक स्पष्टतः अवैध प्रशासनिक कार्रवाई को वैध ठहरा देंगे।”
इस आधार पर कोर्ट ने चार प्रमुख विधिक प्रश्न बड़ी पीठ को संदर्भित किए:
- क्या को-ऑर्डिनेट पीठ ने पूर्व याचिका में केवल प्रशासनिक आदेश की वैधता की चुनौती को द्वितीय अपील लंबित होने के आधार पर खारिज कर सही निर्णय दिया?
- क्या विवाद लंबित होने की स्थिति में गृह सचिव द्वारा 07.10.2024 को जारी आदेश विधिसम्मत था?
- क्या प्रशासनिक अधिकारी कब्जा हटाने और नया कब्जा दिलाने के लिए अधिकृत थे, या क्या उन्हें पक्षकारों को कानूनी उपाय अपनाने की सलाह देनी चाहिए थी?
- क्या यह प्रशासनिक कार्यवाही U.P. Revenue Code, 2006 की धारा 134 जैसे वैधानिक उपायों को दरकिनार नहीं करती और कानून के शासन के विरुद्ध नहीं है?
निष्कर्ष:
कोर्ट ने अंत में स्पष्ट किया:
“हम इस बात से कोई सरोकार नहीं रखते कि संबंधित पक्षों का भूमि पर अधिकार या स्वामित्व किस आधार पर है। हमारा ध्यान केवल 07.10.2024 को जारी प्रशासनिक पत्र और उसके तहत की गई कार्रवाई की वैधता पर केंद्रित है।”
कोर्ट ने निर्देश दिया कि यह मामला अब मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जाए ताकि उपयुक्त संख्या की पीठ द्वारा इन प्रश्नों का निर्णय लिया जा सके।
मामला: रिट – सी संख्या 11176 / 2024 (श्रीमती राजलक्ष्मी व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य)