मथुरा-वृंदावन के मंदिरों का फंड रोकने पर हाईकोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई

हाल की सुनवाई में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले चार वर्षों से प्रमुख ठाकुर रंगजी महाराज विराजमान मंदिर सहित मथुरा और वृंदावन के नौ मंदिरों को वार्षिक धनराशि वितरित नहीं करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के प्रति अपनी अस्वीकृति व्यक्त की। कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार से हलफनामा मांगते हुए जवाब मांगा है.

सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने राजस्व मंडल के सचिव/आयुक्त को नोटिस जारी कर उपस्थिति अनिवार्य कर दी है। इसके बाद राजस्व बोर्ड के सचिव/आयुक्त की अदालत में उपस्थिति के बाद पीठ ने पिछले चार वर्षों से इन मंदिरों के रुके हुए भुगतान के संबंध में कड़ी पूछताछ की।

अदालत ने अधिकारियों के रवैये पर आलोचनात्मक टिप्पणी करते हुए कहा, “आप राजा या राजपरिवार नहीं हैं, बल्कि सरकारी सेवक हैं, और आपको तदनुसार कार्य करना चाहिए।” पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि मंदिरों के लिए दिया जाने वाला वार्षिक अनुदान करदाताओं का पैसा है, न कि अधिकारियों के लिए निजी धन जिसे वे अपनी इच्छानुसार रोक सकें।

पीठ ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए सवाल किया कि अगर सरकार अपने कर्मचारियों को हर महीने की पहली तारीख को समय पर वेतन वितरण सुनिश्चित कर सकती है, तो यही सिद्धांत मंदिरों की वार्षिकी पर लागू क्यों नहीं होना चाहिए। ठाकुर रंगजी महाराज विराजमान मंदिर और आठ अन्य मंदिरों द्वारा याचिका दायर करना उस गंभीर स्थिति को रेखांकित करता है जहां धार्मिक संस्थान अपने उचित बकाया के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करने के लिए मजबूर हैं।

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अदालत ने इस प्रक्रिया को मानक प्रक्रिया करार देते हुए कहा कि मौजूदा बजट आवंटन के साथ, धन को सरकारी खजाने से मंदिर के खातों में निर्बाध रूप से स्थानांतरित किया जाना चाहिए। अधिकारियों से इसके लिए उचित व्यवस्था करने का आग्रह किया गया।

न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की अध्यक्षता में यह सुनवाई पिछले अदालत के निर्देश का पालन करती है जिसमें सरकार को धन जारी करने का आदेश दिया गया था। हाईकोर्ट का रुख सार्वजनिक धन के प्रबंधन और वितरण में पारदर्शिता और दक्षता की महत्वपूर्ण आवश्यकता को दर्शाता है, भले ही यह धार्मिक संस्थानों से संबंधित हो।

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