इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनडीपीएस (NDPS) एक्ट के तहत जब्त किए गए एक वाहन को छोड़ने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति चवन प्रकाश की पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि वाहन मालिक का नाम एफआईआर (FIR) में नहीं है और उसके खिलाफ कोई आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल नहीं किया गया है, तो वाहन को अनिश्चित काल तक रोके रखना उचित नहीं है। कोर्ट ने विशेष न्यायाधीश, बदायूं के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें वाहन को छोड़ने से इनकार कर दिया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 17 जनवरी 2022 की एक घटना से जुड़ा है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, पुलिस ने जिला बदायूं के गिरधरपुर चौराहे पर एक बिना नंबर प्लेट वाली होंडा अमेज कार को रोका। मौके पर कार के बाहर दो व्यक्ति, अजय और सूरज, खड़े पाए गए।
तलाशी लेने पर पुलिस ने अजय के पास से 3 किलो अवैध “डोडा पाउडर” और एक तमंचा बरामद किया, जबकि सूरज के पास से 3.3 किलो अवैध “डोडा पाउडर” मिला। इस आधार पर थाना बिल्सी, जिला बदायूं में एनडीपीएस एक्ट की धारा 8/15 के तहत अपराध संख्या 23/2022 दर्ज की गई। विवेचना के बाद पुलिस ने आरोपी अजय के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी, लेकिन वाहन (UK-04P6694) के पंजीकृत मालिक, सोमवीर (याची), को एफआईआर में नामजद नहीं किया गया।
सोमवीर ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष अपने वाहन की सुपुर्दगी (release) के लिए आवेदन किया था, जिसे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश (एनडीपीएस एक्ट), बदायूं ने 5 मार्च 2022 को खारिज कर दिया था। इसी आदेश को चुनौती देते हुए सोमवीर ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका (Criminal Revision) दाखिल की।
पक्षों की दलीलें
याची सोमवीर की ओर से अधिवक्ता हर्षित गुप्ता और रामानंद गुप्ता ने तर्क दिया कि वाहन मालिक पूर्णतः निर्दोष है और उसे पुलिस ने झूठा फंसाया है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि याची का नाम एफआईआर में नहीं है और न ही उससे कोई बरामदगी हुई है। अधिवक्ताओं ने यह भी दलील दी कि वाहन पुलिस स्टेशन में खुले में पड़ा खराब हो रहा है और उसकी उपयोगिता खत्म हो रही है।
याची के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के सुंदरभाई अंबालाल देसाई बनाम गुजरात राज्य (2003) के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि पुलिस स्टेशनों में लंबे समय तक जब्त वाहनों को रखने का कोई औचित्य नहीं है और मजिस्ट्रेट को उचित शर्तों पर वाहन वापस करने का आदेश देना चाहिए। उन्होंने कहा कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 60 के तहत वाहन की जब्ती तभी हो सकती है जब मालिक की संलिप्तता साबित हो, जबकि यहाँ मालिक निर्दोष है।
दूसरी ओर, राज्य सरकार की तरफ से पेश हुए सरकारी वकील (G.A.) ने स्वीकार किया कि याची ही वाहन का पंजीकृत मालिक है, लेकिन उन्होंने आवेदन का विरोध करते हुए कहा कि उक्त वाहन अपराध में शामिल पाया गया था, इसलिए विशेष न्यायाधीश का आदेश सही है।
हाईकोर्ट का विश्लेषण
न्यायमूर्ति चवन प्रकाश ने एनडीपीएस एक्ट की धारा 60 का विश्लेषण किया, जो नशीले पदार्थों की तस्करी में इस्तेमाल वाहनों की जब्ती से संबंधित है। कोर्ट ने noted किया कि धारा 60(3) के तहत, यदि वाहन मालिक यह साबित कर दे कि वाहन का उपयोग उसकी जानकारी या सहमति के बिना किया गया था, तो उसे जब्ती से छूट मिल सकती है।
कोर्ट ने कहा कि, “एनडीपीएस मामलों में ट्रायल के दौरान वाहनों की अंतरिम सुपुर्दगी को लेकर विभिन्न न्यायालयों के अलग-अलग मत रहे हैं।” पीठ ने जनरल इंश्योरेंस काउंसिल बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और सुंदरभाई अंबालाल देसाई सहित कई फैसलों का उल्लेख किया जहाँ अदालतों ने अंतरिम रूप से वाहन छोड़ने का निर्देश दिया है।
विशेष रूप से, हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले बिश्वजीत डे बनाम असम राज्य (क्रिमिनल अपील नंबर 87 ऑफ 2025) का सहारा लिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि वाहन मालिक कथित अपराध में शामिल नहीं पाया जाता है, तो वाहन को उसके पक्ष में छोड़ा जा सकता है।
तथ्यों पर गौर करते हुए हाईकोर्ट ने टिप्पणी की:
“वर्तमान मामले में, याची का नाम एफआईआर में आरोपी के रूप में नहीं है। उसके खिलाफ कोई चार्जशीट दाखिल नहीं की गई है। इसलिए, यह एक उपयुक्त मामला है जिसमें प्रश्नगत वाहन को छोड़ा जाना चाहिए।”
निर्णय
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्रिमिनल रिवीजन संख्या 2901 ऑफ 2022 को स्वीकार करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, बदायूं के 5 मार्च 2022 के आदेश को रद्द कर दिया।
कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह याची द्वारा व्यक्तिगत मुचलका (personal bond) और समान राशि की दो जमानतें (sureties) पेश करने पर वाहन को ‘सुपुर्दगी’ पर छोड़ दे। वाहन की रिहाई के लिए कोर्ट ने निम्नलिखित शर्तें लगाई हैं:
- वाहन का वीडियो और तस्वीरें तैयार की जाएंगी।
- वाहन की पहचान से संबंधित दस्तावेजों को जांच अधिकारी, वाहन मालिक और आरोपी द्वारा हस्ताक्षरित कर सत्यापित किया जाएगा।
- याची को ट्रायल कोर्ट में अंडरटेकिंग (वचनबद्धता) देनी होगी कि वह मुकदमे के निस्तारण तक वाहन को न तो बेचेगा और न ही उसका स्वामित्व किसी और को सौंपेगा।
- याची को यह भी वचन देना होगा कि यदि कोर्ट आदेश देता है, तो वह एक सप्ताह के भीतर वाहन को सरेंडर करेगा या आयकर कानून के अनुसार निर्धारित वाहन का मूल्य जमा करेगा।




