इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में लगातार बढ़ते बंदर आतंक पर कड़ा रुख अपनाते हुए राज्य के नगर विकास विभाग को निर्देश दिया है कि वह शपथपत्र दाखिल कर बताए कि उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम और उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम के तहत अब तक क्या कदम उठाए गए हैं और आगे क्या कदम प्रस्तावित हैं।
मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि विभिन्न विभाग जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डाल रहे हैं और राज्य सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस कार्ययोजना या मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) तैयार नहीं की गई है। अदालत समाजसेवी वीनीत शर्मा द्वारा दायर जनहित याचिका और एक अन्य याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
पीठ ने कहा कि गाजियाबाद जिलाधिकारी द्वारा 20 अगस्त को भेजे गए पत्र के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। अदालत ने आदेश में कहा, “अगली तारीख से पहले आवश्यक कार्रवाई की जाए।” अगली सुनवाई की तारीख 31 अक्टूबर तय की गई है।

याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि एक ओर लोग बंदरों के हमलों से परेशान हैं, वहीं दूसरी ओर भोजन की कमी के कारण बंदर भूख और कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। अदालत को कौशांबी, प्रयागराज, सीतापुर, बरेली और आगरा में हुए बंदर हमलों की अखबार की कतरनें भी दिखाई गईं और कहा गया कि यह समस्या केवल कुछ जिलों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे राज्य में फैली हुई है।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि बंदरों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची से हटाए जाने के बाद अब उनकी जिम्मेदारी नगर निगम और नगर पालिका कानूनों के तहत स्थानीय निकायों पर है। “यह उनका दायित्व है कि वे इस उपद्रव को रोकें और जनता की सुरक्षा व सुविधा सुनिश्चित करें,” वकील ने कहा।
जनहित याचिका में तत्काल कार्ययोजना बनाने, पशु चिकित्सालय व उपचार केंद्र स्थापित करने, पर्याप्त रेस्क्यू वैन उपलब्ध कराने, बंदरों का जंगलों में पुनर्वास कराने, भोजन की समुचित व्यवस्था करने और 24×7 शिकायत निवारण हेल्पलाइन पोर्टल स्थापित करने की मांग की गई है।
अदालत ने नगर विकास विभाग को मामले में पक्षकार बनाया है और स्पष्ट किया कि राज्यभर के सभी नगर निकायों की जवाबदेही उसी पर है।